________________
षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन
९९/ ७२२
पद्मादिकमल सुबह में विकसित होते है - खीलते है। घोषातकी इत्यादि पुष्प संध्याकाल में विकसित होते है - खिलते है। कुमुदादि चंद्र के उदय में विकसित होते है – खिलते है। मेघ (बरसात) बरसने पर समीवृक्ष के पत्ते गिरने लगते है। लतायें (बेले) योग्य आश्रय को लेकर उपर चढती है। लज्जाशील इत्यादि वनस्पतियों के पत्ते हाथ इत्यादि के स्पर्श से संकुच जाते है। उसी तरह से वनस्पतियों में अनेक प्रकार की स्पष्ट क्रियायें दिखाई देती है। अथवा सभी वनस्पतियां विशिष्ट ऋतु में ही फल देती है। इस प्रकार नजदीक में कही हुई वृक्षसंबंधी विविध क्रियायें ज्ञान बिना होती नहीं है। इसलिए सिद्ध होता है कि वनस्पति सचेतन है। ___ तथा यथा मनुष्यशरीरं हस्तादिछिन्नं शुष्यति, तथा तरुशरीरमपि पल्लवफलकसमादिछिन्नं विशोषमुपगच्छद्दृष्टम् । न चाचेतनानामयं धर्म इति । तथा यथा मनुष्यशरीरं स्तनक्षीरव्यञ्जनौ-दनाद्याहाराभ्यवहारादाहारकं, एवं वनस्पतिशरीरमपि भूजलाद्याहाराभ्यवहारादाहारकम् । न चैतदाहारकत्वमचेतनानां दृष्टम् । अतस्तत्सद्भावात्सचेतनत्वमिति । तथा यथा मनुष्यशरीरं नियतायुष्कं तथा वनस्पतिशरीरमपि नियतायुष्कम् । तथाहि. अस्य दशवर्षसहस्राण्युत्कृष्टमायुः । तथा यथा मनुष्यशरीरमिष्टानिष्टाहारादिप्राप्त्या वृद्धिहान्यात्मकं तथा वनस्पतिशरीरमपि । तथा यथा मनुष्यशरीरस्य तत्तद्रोगसंपर्काद्रोगपाण्डुत्वोदरवृद्धिशोफकृशत्वालिनासिकानिम्नीभवनविगलनादि । तथा यथा मनुष्यशरीरस्यौषधप्रयोगाद्वृद्धिहानिक्षतभुग्नसंरोहणानि तथा वनस्पतिशरीरस्यापि । तथा यथा मनुष्यशरीरस्य रसायनस्नेहाधुपयोगाद्विशिष्टकान्तिरसबलोपचयादि तथा वनस्पतिशरीरस्यापि विशिष्टेष्टनभोजलादिसेकाद्विशिष्टरसवीर्यस्निग्धत्वादि । तथा यथा स्त्रीशरीरस्य तथाविधदौहृद-पूरणात्पुत्रादिप्रसवनं तथा वनस्पतिशरीरस्यापि तत्पूरणात्पुष्प-फलादिप्रसवनमित्यादि । व्याख्या का भावानुवाद :
जैसे हाथ इत्यादि कट जाने से मनुष्य का शरीर सूख जाता है। वैसे वृक्ष का शरीर भी पत्तियां, फल, फूल इत्यादि छिदने से सूखा होता दिखाई देता है । तथा यह अचेतन का धर्म नहीं है। सचेतन में ही यह धर्म देखने को मिलता है।
जैसे मनुष्य का शरीर माता का दूध, सब्जी, चावल इत्यादि आहार से पुष्ट होता होने से आहारक है, वैसे वनस्पति का शरीर भी पृथ्वी, पानी इत्यादि आहार से पुष्ट होता होने से आहारक है और यह आहारकत्व अचेतनपदार्थो में दिखाई देता नहीं है। इस आहारकता के सद्भाव से वनस्पति का शरीर भी सचेतन सिद्ध होता है।
जैसे मनुष्य का शरीर नियत आयुष्यवाला है, वैसे वनस्पति का शरीर भी नियत आयुष्यवाला है। वनस्पति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org