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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप (१९) तत्त्वार्थसूत्र (प्रथम अध्याय मात्र) टीका : (मूलकर्ता-श्री उमास्वातिजी म.) इस टीका ग्रन्थ में निक्षेप-नयप्रमाणादितत्त्वों का रहस्य प्रकाश में लाया गया हैं । (२०) योगविंशका टीका : इस में श्री हरिभद्रसूरि विरचित विंशतिविंशिका-अन्तर्गत योगविंशिका की विशद व्याख्या हैं - इस में स्थान-उर्ण-अर्थ-आलम्बन और निरालम्बन पाँच प्रकार के योग का विशद निरूपण किया गया है । (२१) स्तवपरिज्ञाअवचूरि : द्रव्य-भाव स्तव का स्वरूप संक्षेप से इस में स्फुट किया गया है। (२२) स्याद्वादरहस्य-वीतरागस्तोत्र के आठवें प्रकाश के उत्तरोत्तर लघु-मध्यम और उत्कृष्ट परिमाण-तीन टीकात्मक इस ग्रन्थ में स्याद्वाद का सूक्ष्म रहस्य प्रकट किया गया है । (२३) स्याद्वादकल्पलता-आ० श्री हरिभद्रसूरि विरचित-"शास्त्रवार्ता समुञ्चय" ग्रन्थ की नव्यन्याय में विस्तृत व्याख्या, जिसमें विविध दार्शनिक सिद्धान्तों की विशद मीमांसा की गयी हैं । (२४) षोडशक टीका : इस टीका ग्रन्थ में जैनाचार के आभ्यन्तर विविध प्रकारों का सुन्दर निरूपण किया गया हैं। (२५) अष्टसहस्री टीका : दिगम्बरीय विद्वान् श्री विद्यानन्द के अष्टसहस्री ग्रन्थ की ८००० श्लोक परिमाण व्याख्या ग्रन्थ हैं, जिस में दार्शनिक विविध विषयों की चर्चा हैं । (२६) पातञ्जलयोगसूत्र टीका : श्री पतञ्जली के योगसूत्र के कतिपयसूत्रो पर जैन दृष्टि से व्याख्या एवं समीक्षा प्रस्तुत की गई हैं । (२७) काव्य प्रकाश टीका-मम्मट कृत काव्य प्रकाश ग्रन्थ की टीका। (२८) न्यायसिद्धान्तमञ्जरी-स्याद्वादमञ्जरी टीका (?) अन्य स्वतंत्र-उपलब्ध-रचनाएँ :
(२९) अध्यात्मसार-इस ग्रन्थ में अध्यात्ममाहात्म्य-अध्यात्मस्वरूप-दम्भत्याग-भवस्वरूपचिन्ता-वैराग्यसम्भव-वैराग्यभेदवैराग्यविषय-ममतात्याग-समता-सदनुष्ठान-मन:शुद्धि-सम्यक्त्व-मिथ्यात्वत्याग-असद्ग्रहत्याग-योग-ध्यान-ध्यानस्तुति-आत्म निश्चय-जिनमतस्तुति-अनुभव-सज्जनस्तुति इस प्रकार २१ विषयों का हृदयङ्गम विवेचन किया गया है । (३०) अध्यात्मोपनिषत् : इस ग्रन्थ में शास्त्रयोग-ज्ञानयोग-क्रियायोग-साम्ययोग इन चार भेद से अध्यात्मतत्त्व का उपदेश हैं । (३१) अनेकान्त व्यवस्था : इस ग्रन्थ में वस्तु के अनेकान्त स्वरूप का तथा नैगम आदि ७ नयों का सतर्क प्रतिपादन हैं । (३२) अस्पृशद्गतिवाद-इस वाद में तिर्यग् लोक से लोकान्त तक के मध्यवर्ती आकाश प्रदेशों के स्पर्श बिना मुक्तात्मा के गमन का उपपादन किया गया है । (३३) आत्मख्याति-इस ग्रन्थ में आत्मा का विभु तथा अण परिमाण का निराकरण किया गया है । (३४) आर्षभीयचरित्र : ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के चरित्र का काव्यात्मक निरूपण इस ग्रन्थ में हैं । (३५) जैन तर्कभाषा : जैन तर्क पद्धति के प्राथमिक परिचय की दृष्टि से इस ग्रन्थ में प्रमाण-नय और निक्षेपों का सरल विवेचन हैं । (३६) ज्ञानबिन्द : इस ग्रन्थ में संक्षेप से पाँच ज्ञान का न्याययक्त विवरण हैं । (३७) ज्ञानसार : पूर्णता-मग्नता आदि ३२ आध्यात्मिक विषयों का ३२ अष्टक में सुन्दर वर्णन हैं - इस ग्रन्थ में मुमुक्षु के लिये अति आवश्यक ज्ञातव्य विषयों का रहस्य बताया गया है । (३८) तिङन्वयोक्ति : तिडन्तपदों के शाब्दबोध का व्युत्पादन इस ग्रन्थ में किया गया है । (३९) देवधर्मपरीक्षा : देवों में सर्वथा धर्माभाव का प्रतिपादन करनेवाले मत विशेष का इस में निराकरण हैं । (४०) सप्तभङ्गी-नयप्रदीप : इस ग्रन्थ में अति संक्षेप से सप्तभङ्गी तथा ७ नय का विवेचन किया गया है । (४१) नयरहस्य : इस ग्रन्थ में नय के सामान्य लक्षण तथा ७ नयों का मध्यमकक्षा का विवरण हैं । (४२) न्यायालोक : इस में मोक्ष के स्वरूप आदि की तर्कपर्ण विचारणा हैं । (४३) निशामक्ति प्रकरण : इस लघुकाय ग्रन्थ में रात्रि भोजन' स्वरूपतः दुष्ट हैं' - इस का उपपादन किया गया हैं । (४४-४५) परमज्योतिःपञ्चविंशिका : परमात्म पञ्चविंशिका-विषय परमात्मस्तुति । (४६) प्रतिमा स्थापनन्याय : इस में प्रतिमापूज्यत्व का व्यवस्थापन किया गया है । (४७) प्रमेयमाला : यह ग्रन्थ विविध वादों का संग्रह हैं । (४८) मार्गपरिशुद्धि : इस ग्रन्थ में श्री हारिभद्रीय ‘पंचवस्तु' शास्त्र के साररुप मोक्षमार्ग की विशुद्धता का सुन्दर प्रतिपादन हैं । (४९) यतिदिनचर्या : जैन
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