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________________ ५१६ षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप श्री उदयसागरगणी कृत ८५०० श्लोक प्रमाण दीपिका टीका, (९) १०७०७ श्लोक प्रमाण दीपिका, (१०) श्री अजितदेवसूरिजी विरचित ११४ श्लोक प्रमाण दीपिका प्रमाण टीका, (११) श्री ज्ञानसागरसूरिजी म. कृत ३६०० श्लोक प्रमाण अवचूरी (१२) ६६१६ श्लोक प्रमाण अवचूरि, (१३) ९२१० श्लोक प्रमाण अवचूरि, (१४) श्री पद्मसागरगणिजी कृत २३५० श्लोक प्रमाण कथाये, (१५) श्री पुण्यानंदनमुनिजी विरचित १२५५ श्लोक प्रमाण कथायें । इस ग्रंथ के मूलसूत्र २००० श्लोक प्रमाण हैं । ४. श्री ओघनियुक्ति (४३) : यह आगम श्री आवश्यक नियुक्ति की ६६५वी गाथा के विवेचनरूप से जीवो के हितार्थे पू.आ.श्री भद्रबाहुस्वामीजीने श्री प्रत्याख्यान प्रवाद नाम के नौवें पूर्व में से संकलित किया हैं । ___ संक्षेप से साधु के जीवन को लागु पडती सभी छोटी - बडी बातो का वर्णन, आदर्श श्रमणचर्या का वर्णन, इस आगम में हैं । इस आगम में मुख्यतः पडिलेहण, पिंड, उपधि का निरूपण, अनायतन का त्याग, प्रतिसेवना, आलोचना और विशुद्धि आदि बातो का विवेचन हैं । प्रासंगिक चरणसित्तरी, करणसित्तरी, साधुजीवन में अपवादिक जयणायें और साधुओं की जीवन पद्धति आदि का वर्णन हैं । ___ परिचय : (१) श्री पूर्वाचार्य कृत ३०० श्लोक प्रमाण भाष्य, (२) ३८२५ श्लोक प्रमाण टीका, (३) पू.आ. श्री मलयगिरिजी म. कृत ७५०० श्लोक प्रमाण वृत्ति, (४) पू.माणिक्यशेखरगणि विरचित ५७०० श्लोक प्रमाण दीपिका टीका, (५) पू.ज्ञानसागरसूरि कृत ३२०० श्लोक प्रमाण अवचूरि, (६) १११ श्लोक प्रमाण उद्धार । इस ग्रंथ के मूल सूत्र ३५५ श्लोक प्रमाण है। ५. श्री पिंडनियुक्ति सूत्र (४४) : यह आगम मुख्यतः साधुओं को गोचरी की शुद्धि का स्पष्ट ख्याल देता है । यह दशवैकालिक के पाँचवे अध्ययन के विवेचन रूप आगम हैं । सूक्ष्मता से इस आगम का अभ्यास करना प्रत्येक साधु-साध्वी को उपयोगी होने से इसकी गणना आगम में स्वतंत्र हुई हैं । इसकी संकलना पू. भद्रबाहुस्वामीजीने की हैं । परिचय : (१) ४६ श्लोक (गाथा) प्रमाण भाष्य, (२) पू. मलयगिरिजी महाराज विरचित ७००० श्लोक प्रमाण वृत्ति, (३) श्री वीराचार्य कृत ३१०० श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति, (४) ४००० श्लोक प्रमाण लघवत्ति, (५) प. श्री माणिक्यशेखर गणि विरचित २८३२ श्लोक प्रमाण अवचरि । इस ग्रंथ में मलसूत्र ८३५ श्लोक प्रमाण हैं । ६. श्री नंदीसूत्र (४५) : यह आगम सभी आगमो की व्याख्या के प्रारंभ में मंगलाचरण रुप से पांच ज्ञान के स्वरूप को बतानेवाला मंगलरूप हैं । पांच ज्ञान का विस्तार से वर्णन इसमें हैं । साथ में श्रुत ज्ञान के चौदह भेदो का, द्वादशांगी का संक्षिप्त वर्णन बहोत ही सुंदर हैं । यह सूत्र सभी आगमो में श्री नवकार मंत्र की तरह सर्वश्रेष्ठ मंगलरूप माना जाता हैं। परिचय : (१) श्री जिनदास गणि विरचित १५०० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (२) पू.आ.श्री हरिभद्रसूरिजी कृत २३०० श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति, (३) आ.श्री चन्द्रसूरिजी म. कृत ३३०० श्लोक प्रमाण विषमपद पर्याय, (४) १६०५ श्लोक प्रमाण अवचूरि। इस ग्रंथ में मूलसूत्र ७०० श्लोक प्रमाण हैं । । ७. अनुयोग द्वार सूत्र (४६) : यह आगम जैन आगमो की व्याख्या करने की अनूठी शैली पर प्रकाश डालनेवाला हैं। पदार्थो के निरुपण की व्यवस्थित संकलना की शैली इस आगम की अनोखी विशेषता है । प्रासंगिक पल्योपम, सागरोपम, गणित के शास्त्रीय व्यवहारिक प्रकार, व्याकरण, काव्य, संगीत आदि की भी कुछ माहितीयाँ है । जैनागमो को समजने के लिए प्रवेशद्वार समान यह आगम हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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