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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, सांख्यदर्शन का विशेषार्थ
श्री गौड, श्री माठर, श्री जयमंगला और श्री चन्द्रिका उसको समजाने के लिए दृष्टांत देते है कि, 'मूल्यदासीवत्' यद्यपि श्री चन्द्रिका आगे कहते है कि गुणात्मक होने से वह सामान्य है।
(५) अचेतन : बुद्धि (महद्) इत्यादि सर्वतत्त्व अचेतन है। श्री वाचस्पति मिश्र कहते है कि बौद्धो ने चाहे बुद्धि को चेतन माना हो, परन्तु वास्तव में तो बुद्धि स्वयं ही जडप्रकृति का कार्य होने से चेतन नहीं हो सकती। इस तरह से प्रधान (अव्यक्त) भी अचेतन ही है और बुद्धि इत्यादि को उत्पन्न करता है। इसलिए उसको चेतन मानने की जरुरत नहीं है। क्योंकि जड में से जैसे घडा उत्पन्न हो सकता है, वैसे उसकी भी उत्पत्ति संभवित हो सकती है। (६) प्रसवधर्मि : इस प्रकार दोनो अपने अपने कार्य को उत्पन्न करते है, इसलिए वह प्रसवधर्मि है।
पुरुष इससे उलटा है। वह अत्रिगुण है। क्योंकि वह निर्गुण है। वह विवेकी है। अविषय है। असाधारण है चेतन और अप्रसवधर्मि है। पुरुष सुख, दुःख का अनुभव करता है। इसलिए चेतन है। परन्तु सुख, दुःख इत्यादि
मा में रहता है। वह मत न्यायदर्शनका है, सांख्य का नहीं, वह याद रखना। इसी तरह से वह चेतन है, इसलिए चैतन्य का आधार है, ऐसा नहीं कहा जा सकता, वह स्वयं चैतन्य है। व्यक्त अव्यक्त
पुरुष हेतुमत् अहेतुमत् अनित्य
नित्य अव्यापि व्यापि
व्यापि सक्रिय निष्क्रिय
निष्क्रिय
अहेतुमत्
नित्य
अनेक
एक
अनेक
आश्रित
अनाश्रित
अनाश्रित
लिंग
अलिंग
अलिंग
सावयव निरवयव
निरवयव परतंत्र स्वतंत्र
स्वतंत्र इस तरह से पुरुष, व्यक्त और अव्यक्त का साधर्म्य और वैधर्म्य है। अब सत्त्वादि तीन गुणो का स्वरुप बताते है - प्रीत्यप्रीतिविषादात्मकाः प्रकाशप्रवृत्तिनियमार्थाः । अन्योन्याभिभवाश्रयजननमिथुनवृत्तयश्च गुणाः ॥१२॥
- (तीन) गुण (अनुक्रमसे) सुख, दुःख और मोहवाले है। उसका प्रयोजन (अनुक्रम से) प्रकाश, प्रवृत्ति और नियमन है। वे ही (वे गुण) परस्पर, अभिभव,आश्रय, उत्पत्ति और सहचार वृत्तिवाले है। (कारिका - १२) ।
यहाँ याद रखना कि, सांख्यदर्शन अनुसार से ये तीन गुण न्यायवैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित गुण जैसे नहीं है। ये तीन गुण धर्म नहीं है परन्तु धर्मी है। ये गुण प्रकृति से भिन्न नहीं है इसलिए उनको प्रकृति के धर्म भी नहीं कहे जा सकते । वे प्रकृति का ही स्वरुप है। प्रत्येक गुण में कुछ धर्म है वे नीचे बताये गये है।
सत्त्व : प्रीति, लघु, प्रकाशक, सुख, ऋजुता, मृदुता, सत्य, शौच, लज्जा, बुद्धि, क्षमा, दया, ज्ञान, प्रसाद, तितिक्षा, संतोष इत्यादि।
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