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________________ তত্ত্বাৰ্থসূত্রম্ सद् दृष्टिज्ञानवृत्तात्मा मोक्षमार्गः सनातनः। आविरासीद् यतोवन्द तमह वीरमच्युतम् ॥१॥. . टीका। सदिति। सइदृष्टिः सम्यग्दर्शनम् , एवं शनपदेन सूत्रोक्तं सम्यग् ज्ञानम् । वृत्तपदेन सम्यक् चारित्रम् । अत्र सत्शब्दन सम्यग् बोधकेन प्रत्येक सम्वध्यते। तदव्यवहितपर सूत्रे स्फुटी भविष्यति। एतत्रितयं आत्मा स्वरूपं यस्य सः। तस्मादत्र भुवने सनातनः शाश्वतः। मोक्षमार्गः कैवल्य पन्था येनाविष्कृतः तमच्युत अविनश्वर वीर जिनदेवम् । वन्दे नमस्करोमीति। यस्मात् सम्यज ज्ञानादिक प्रादुरभूत् त देव प्रणमामीतिभावः। वीरमिति। विशेषेण ईरयति लोकमानसे शान्त्युद्रक सम्यज ज्ञानञ्च जनयति इति वीरः। जयति रागादीन् सर्वान यः स जिनः। “जिनोहे ति वुद्ध च पुसिस्याज्जिखरेत्रिषु" इति कोपः। जिनदेवोपदेशज्ञापक दर्शन जैनदर्शनम्। दृश्यते आयते येन तद्दर्शन मिति दृशे ानार्थतेति ॥ क॥ . সব্যাখ্যানুবাদ। এই দর্শন শাস্ত্রের প্রতিপাদ্য বিষয় মােক্ষমার্গ। যাহার উপদেশ দ্বারা সনাতন মােক্ষপথের দর্শন সমাজে আবিভূত হইয়াছে তিনিই অমর বিশ্বপ্রভু, সকল সদ্গুণাধার অবিনশ্বর সেই জিন দেবকে গ্রন্থের প্রারম্ভে নমস্কার। এক সময়ে অবতীর্ণ হইয়া বীর প্রভু সম্যক্ জ্ঞান প্রভৃতির উপদেশ দ্বারা মানবের কল্যাণ ও নির্বাণের নিমিত্ত যাহা প্রচার করিয়াছিলেন সে সকল তত্ত্ব পুনঃ প্রচার করিবার প্রয়ােজন হয়, যেহেতু প্রচারিত তত্ত্ব সকল কালের প্রভাবে সমাজ মধ্যে লােকের অনাদরেও লুপ্ত হইয়া যায়। এই গ্রন্থের প্রতিপাদ্য বিষয় প্রাচীন জিন দেবের উপদিষ্ট, তদনুসারে প্রভাচন্দ্রাচার্য ও বর্ণনা করিয়াছেন। ক। सूत्रारम्भः सम्यग दर्शनावगमवृत्तानि मोक्षहेतुः॥१॥* टीका। सम्यगिति। सम्यग दर्शन, सम्यज ज्ञान, सम्यक् चारित्रम् । सम्मिलितमेतत्रितय मोक्षसाधनमित्यर्थः। अत्रावगमवृत्तपदाभ्यां शानचारियोग्रहण भवति। * सभाष्यतत्वार्थाधिगम सूत्रपाठएवमेव दृश्यते । “सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥” . इति अः १, सूत्र १। अनयोः सूत्रयोरेकार्थता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004069
Book TitleTattvartha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshvarchandra Shastri
PublisherIshvarchandra Shastri
Publication Year
Total Pages94
LanguageBengali
ClassificationBook_Other
File Size8 MB
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