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________________ आज से कब हुआ? | विक्रम संवत ईस्वी. पूर्व| विन क्या चा? | स्थल नाम आषाढ़ शुक्ला-६ ६०० वर्षान्ते १. व्यवन कल्याणक वी.सं. २५६९-वर्ष, |९ महिने ७॥ दिनान्ते २. जन्म कल्याणक | २५६९-वर्षान्ते ३. वीक्षा कल्याणक | २५३९ वर्षान्ते बाहमणकुंड गाम । नगर क्षत्रिय कुंडगामनगर विदेह जनपद (उ. बिहार) ५१३ चैत्र शुक्ला १३ कार्तिक कृष्णा १० (शास्त्रीय मार्गशीर्ष कृष्णा १०) | वैशाख शुक्ला-१० २५२७-वर्षान्ते ५५७ - वर्तमान बिहार कल्याणक (सर्व जृम्भिकगाम (अजुवालिका नदी के किनारे) पावापुरी ५. मोक-निर्वाण कल्याणक | २४९७ वर्षान्ते अधिक | ४७१ । ५२७ आश्विन कृष्णा अमास शास्त्रीय का, कृष्णा * यहाँ जिन वर्षों का उल्लेख किया है, वह इस ग्रन्थ लेखन के समय में प्रवर्तमान वि.सं. २०२७, ई. स. १९७० को लक्ष्य में रखकर किया गया है। दिवस छोड़कर मात्र वर्ष के ही पूर्णाक दिये गये है। * प्रत्येक तीर्थकरदेव के (च्यवन कल्याणक को छोड़कर शेष चार) कल्याणक के समय पर तीनों ही लोक में अन्तर्मुहूर्त (दो घड़ी) तक उद्योत होता है, और इन चार का उत्सव मनाने के लिये इन्द्रादिक देव मनुष्यलोक में आते है। * क्या सभी कल्याणक के प्रसंग पर इन्द्र के सिंहासन का कंपन" और शक्रस्तव की स्तुति होती है? जवाब में कोई निश्चित उल्लेख मिला नहीं है। परिशिष्ट सं. १० वर्षमान-मातापिता द्वारा दिया गया। भगवान श्रीमहावीर के मुख्य-विविध नाम जातनवन-" जातकुलोत्पत्र होने के कारण। श्रमण- साधु (तपश्चर्या करने की महान् शक्ति तथा सहन करने की शक्ति के कारण) निर्गन्ध-मुनि (राग-द्वेष की ग्रन्धि देवार्य-लोगों द्वारा प्रदत्ता के भेदक होने से) महावीर-देवों द्वारा दिया गया। * भगवान के 'विदेह' (कल्प, सू. ११०) और 'वैशालिक (सूत्रकृतांग टीका) तथा 'सन्मति' ऐसे अन्य यौगिक नाम मिलते हैं। *बौद्ध ग्रन्थकारों ने महावीर के लिये निगण्ठ, नाटपुत्त, नातपुत्त, णायपुत्त आदि शब्द प्रयोग किये है। * अन्य ग्रन्थकारों ने भगवान को विविध नामों से परिचित कराया है, तथापि भगवान देवकृत 'महावीर' नाम से ही सुविख्यात हुये। ४७. एक समझने योग्य बात यह है कि (श्री नेमिचन्दरचित 'महावीर चरिय' (श्लो. ६०२) और ज्ञातकुल ज्ञातवंश आदि। त्रिषष्ठी श.पु. चरित्र सर्ग २, श्लो. ७) आदि ग्रन्थों में, इन्द का सिंहासन आषाढ शुक्ला श्वेताम्बरीय कल्पसूत्र, सूत्रकृतांगादि आगमों में अनेक स्थान पर 'णायकले.' शब्द प्रयोगकर षष्ठी जो व्यवन कल्याणक का दिन है उसी दिन कंपित नहीं हुआ था। लेकिन गर्भापहरण भगवान को ज्ञातकुल का बताया है, अर्थात् ज्ञात यह कुल (तथा वंश) का वाचक शब्द द्वारा गर्भ को तिरासी वे दिन देवानंदा की कुक्षि में स्थापित किया उसी दिन कंपित हुआ हुआ। अब उस शब्द के साथ 'पुत्त' शब्द को जोड़कर भगवान को 'णायपुत्त' कहा है। वा ऐसा स्पष्ट उल्लेख है। जब कि कल्पसूत्र मूल में देवानंदा की कुक्षि में अवतरण के इसके संस्कृत रूपान्तर में उन्हें 'शातपुत्त' कहा गया। समय तथा गर्भापहरण के समय सिंहासन कंपने की बात का कुछ भी उल्लेख नहीं है, दिगम्बर परम्परा में जयधवलाकार ने (भा. १, श्लोक २३) भगवान को गाहकुले, वहाँ तो इन्दने स्वेच्छा से ज्ञान द्वारा क्षत्रियकुण्ड को देखा और देवानन्दा के गर्भ में भगवान तिलोयपण्णती ग्रन्थ में (अ. ५) में 'णाहोग्गवंशेषु वीर', और देशभक्ति में 'उग्रनाथी को आया देखा। और इदने 'नमुत्युणं' की जो स्तुति की है वह देवानंदा के गर्भ में आये तब पार्श्ववीरी', गुणभदीय उत्तरपुराण में 'नाथकुलस्यैकः' आदि उल्लेख द्वारा नाथकुल के बताये की है। इस से यह जाना जाता है कि व्यवन कल्याणक के दिन सिंहासन चलित होने की गये है। बात का उल्लेख नहीं है। बौद्ध त्रिपिटकों में 'नाहपुत्तो' (दीप. नि.) 'नात्तपुतो' (म.नि.) से सम्बोधित किया गया है। ४८. प्राचीन काल मे कुल, वंश, जाति, देश और ग्राम के आधार पर व्यक्ति को पहचानने की इन सबका फलितार्थ यही है कि णाय-नाय, णाह, नाट्ट, नाट-नात्त (ति)-नात्त ये सब एक प्रथा-विशेष रूप में थी। यहाँ भगवान वर्धमान महावीर के श्वेताम्बर, दिगम्बर तथा बौद्ध ही अर्थ के वाचक है। मात्र भाषा भेद से ही शब्द भेद हये है। बौड त्रिपिटक में भगवान ग्रन्धकारों ने उनके कुल से आधारित क्या-क्या नाम का उल्लेख किया है, यह देखें। महावीर के लिये निगण्ठ, निगण्ठणायपुत्तो, इन शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। एक स्पष्टता होनी आवश्यक है कि कुल, वंश, जाति, इन शब्दों के अर्थ के बीच में भेद | ४९. और भी सूत्रकृतांग (२, २, ३१) में तो गाय (जात) शब्द से ही महावीर का नाम सचित रेखा होने पर भी लेखक सामान्य रूप से समानार्थक भी स्वीकार करते है, जैसे कि । किया है। ८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004065
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir 48 Chitro ka Samput
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherJain Sanskruti Kalakendra
Publication Year2007
Total Pages301
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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