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________________ (८२) स्वातिवाचकजीने अलगही बनाये हैं, और जब ऐसा निश्चय होगा तो जरूर मानना होगा कि-दिगम्बगेंने ही घोटाला करके इन दोनों सूत्रोंकों इकट्ठा करके एकही सूत्र बना दिया है: भाग्य है जगज्जीवोंका कि इन दिगम्बरोंने भगवानके भाषित सूत्र मंजूर नहीं रखे हैं. अन्यथा एक दोसौ श्लोकके तत्वार्थसूत्र में इतना घोटाला दिगम्बरोंने कर दिया है तो फिर वे लोग सूत्रको मंजूर करते तब तो बडे बडे सूत्रोंमें क्या क्या घोटाला नहीं कर देते ? __(२५) दसवें अध्यायमें श्वेताम्बरलोग 'मोहक्षया ज्ञानदर्शनावरणांतरायक्षयाच्च केवलं' 'बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां' और 'कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः' इस तरहसे तीन सूत्र मानते हैं. तव दिगम्बरलोग 'मोहक्षयाज् ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच कैवलं' 'बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः' इस तरहसे दो सूत्र मानते हैं. अब वास्तवमें इधर तीन सूत्र हैं कि दो सूत्र हैं इसका निर्णय करना जरूरी है. यद्यपि इधर दो सूत्र माने या तीन सूत्र माने, लेकिन एक भी बातका इन दोनों फिरकों में फर्क नहीं है जितनी बाबत श्वेताम्बर मानते हैं उतनी ही दिगम्बर मानते हैं, लेकिन श्वेताम्बरोंके हिसाबसे यह रिवाज है कि सूत्रभेद करे, या सूत्र और अक्षर भेद नहीं करते भी अर्थको भेद करे तो प्रायश्चित्तापत्ति कम नहीं है. अस्तु. लेकिन इधर भेद किसकी तरफसे हुआ ? तीन सूत्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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