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________________ ( ६३ ) किन्तु दिगंबरियोंने ही घुसेड दिये हैं । यदि भावनाओंके 9 सूत्र दिगम्बरियोंके घुसेडे हुए नहीं होते तो इन सूत्रोंमें हरएक जगह 'पंच पंच' शब्द कहांसे घुस जाता १, क्योंकि आचार्यश्रीजीनेतो देशविरार्त के अतिचारके सूत्रों में पांच पांच अतिचार गिनाये हैं, किन्तु किसी भी सूत्र में 'पंच, पंच' ऐसा नहीं कहा है । जब 'पंच पंच' ऐसा वीप्सा वचन कहकर व्याप्ति दिखा दो तो फिर प्रत्येक स्थान में सूत्र सूत्र पर 'पंच पंच' कहते रहना यह बात एक मामूली विद्वान्मी उचित नहीं समझता। तो फिर आचार्यश्रीजी जैसे अद्वितीयविद्वान् और संग्रहकारको ऐसा करना कैसे लाजिम हो सकता है । इसमें भी सूत्रकारने 'निक्षेप' शब्द समिति के अधिकार में लिया है, और इधर 'निक्षेपण'. ऐसा गुरुतायुक्त शब्द घर दिया वह संग्रहकार के लिये कैसे लाजिम होगा ? इसी प्रकार 'आलोकितान्नपानानि ' ऐसा लघु निर्देश शक्य होने पर भी आलोकितपानभोजनानि ' ऐसा गौरव करना भी लाजिम नहीं था । इसके सिवाय दूसरे महाव्रतकी भावनाओं में भी 'भय' शब्द रखकर 'क्रोध लोभ भयहास्य' ऐसा लघुनिर्देश सुगम और प्रसिध्धिवाला हो सके उसको छोडकर ' क्रोध लोभ भीरुत्वहास्य ' ऐसा गुरुतायुक्त टेढा निर्देश कौन अकलमंद करेगा, साथ ही साथ 'प्रत्याख्यानानुवीची भाषणानि ऐसा लघु निर्देश होने पर भी 'प्रत्याख्यानान्यनुवीची भाषणं च ऐसा मुरुतायुक्त और निरर्थकवाक्य भेदयुक्त कहना संग्रहकारको For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International :
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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