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________________ और वायुकाय गतिसे त्रस हैं और लब्धिसे स्थावर हैं. इससे इन दोनोंको त्रस और स्थावरमें गिने हैं. लेकिन इधर तर्कानुसारियोंके तर्कका खयाल करके दोनों बात दिखाना शास्त्रकारके हिसाबसे लाजिम है.. . (७) सूत्र २०में दिगम्बरलोगोंने स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः' ऐसा सूत्र माना है. और श्वेताम्बरोंने स्पर्शस्सगन्धरूपशब्दास्तेषामर्थः' ऐसा माना है, इसमें तीन बातका फरक है. १ वर्ण लेना कि रूप लेना २ तद् लेना कि तेषां लेना और ३ अर्थ लेना कि अर्थाः लेना. यद्यपि इनमेंसे किसी भी तरहसे लेने पर तात्विक मन्तव्यका फर्क नहीं होगा. लेकिन असल क्या होना चाहिये यह सोचनेका है. खयाल करनेका है कि पांचवें अध्यायमें 'नित्यावस्थितान्यरूपीणि' और 'रूपिशः पुद्गला:' लेना है, परंतु वर्ण नहीं लेना है, इन सूत्रोंको दोनों मंजूर करते हैं. और वहां रूपशब्दसे दृश्यमानता ही लेनी है, तो फिर इधर रूपशब्दको पलटानेकी क्या जरूरत है ?, वहां भी रूपशब्दसे ही उपलक्षणसे स्पर्शादिक भी लेकर धर्मास्तिकासादिकमें रूपरसगंधस्पर्श और शब्दमेंसे कुछ भी नहीं है यही कहनेका है. यदि रूपशब्द इधर न लेवें तो गन्धादिकका अभाव उपसणसे कैसे लेंगे ? रूपशन्दसे वहां पर पांचवें अध्यायमें मूविता लेना होवे और इधर वर्णशब्दसे शुङ्गादि लेना हो तो यह बात अलग है. परन्तु इयर इन्द्रियों का विषय कहना है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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