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________________ विग्रहगति (एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर की प्राप्ति के लिए गमन ) T मुक्त T ऋजु T सरल एक समय अनाहारक दो समय T एक मोड़ 1 आहारक सम्मूर्छन-गर्भोपपाता जन्म ||32|| Jain Education International a) सम्मूर्च्छन : माता-पिता के उत्पत्ति स्थान के सभी ओर से (अ) बेइन्द्रिय पुद्गलों को ग्रहण करके अपने जन्म के प्रकार तीन समय 1 दो मोड़ T 46 अनाहारक 7 संसारी ऋजु-वक्र सरल और मोड़ एक समय T आहारक सूत्रार्थ : सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपात ये जन्म के तीन प्रकार । विवेचन : इस सूत्र के जन्म के तीन प्रकार बताये गये हैं। सम्बन्ध के बिना ही जब जीव अपने विद्यमान शरीर योग्य औदारिक शरीर का निर्माण करता है, उसे सम्मूर्च्छन जन्म कहा जाता है। एकेन्द्रिय से चउरिन्द्रिय तक के सभी जीवों का सम्मूर्च्छन जन्म होता है। चार समय I तीन मोड़ अनाहारक (b) गर्भज : स्त्री के गर्भाशय में शुक्र और शोणित (वीर्य और रज) औदारिक पुद्गलों को जीव जब अपने शरीर रूप परिणत करता है उसे गर्भज जन्म कहा जाता है। c) उपपात : जब जीव अपने उत्पत्ति स्थान की सर्व दिशाओं में विद्यमान वैक्रिय पुद्गलों को ग्रहण करके उनसे अपने शरीर का निर्माण करे उसे उपपात जन्म कहते हैं। यह जन्म देव और नारकियों का होता हैं। (ब) छान्द्रय (स) चतुरिन्द्रिय
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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