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________________ इन्द्रियों की संख्या पंचेन्द्रियाणि ||15।। सूत्रार्थ : इन्द्रियाँ पांच प्रकार की होती हैं। विवेचन : जिससे हमें बाह्य पदार्थों का ज्ञान प्राप्त हो, उसे इन्द्रिय कहते हैं। जीव के कितने भी विभाग हो सकते हैं लेकिन इन्द्रियाँ पांच से अधिक नहीं हो सकती हैं। द्विविधानि ||16।। सूत्रार्थ : ये पाँचों इन्द्रियाँ दो प्रकार की होती हैं। विवेचन : ये सभी (पांचों) इन्द्रियाँ दो-दो प्रकार की होती हैं - द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। द्रव्येन्द्रिय : इन्द्रिय की पौदगलिक आकार रचना। नाक, कान, रसना, चक्षु और त्वचा की बाहरी और भीतरी आकार विशेष पौद्गलिक रचना को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। ___ भावेन्द्रिय : आत्मा के परिणाम विशेष (जानने की योग्यता और प्रवृत्ति) को भावेन्द्रिय कहते हैं। निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ||17 || सूत्रार्थ : द्रव्येन्द्रिय के दो प्रकार है - निवृत्ति और उपकरण। विवेचन : इस सूत्र में द्रव्येन्द्रिय के दो भेद बताये गये हैं। a. निवृत्ति और b. उपकरण। निर्वृत्ति : निर्वृत्ति का अर्थ है रचना। शरीर पर दिखने वाली इन्द्रियाँ सम्बन्धी पुद्गलों की विशिष्ट रचना के रूप में जो आकृतियाँ है, वह निर्वृत्ति इन्द्रिय है। उपकरण : निर्वृत्ति इन्द्रिय में स्वच्छ पुद्गलों से बनी हुई और अपने विषय ग्रहण करने में उपकारक जो पौद्गलिक शक्ति होती है - जिसके द्वारा शब्दादि विषयों का ग्रहण होता है। उसे उपकरण इन्द्रिय कहते हैं। यह बाह्य ज्ञान में सहायक होता है, तथा निर्वृत्त रूप रचना को हानि नहीं पहुँचने देता है। निर्वृत्ति और उपकरण दोनों दो-दो भेद होते हैं - a. आन्तरिक और b. बाह्य। उदाहरण के लिए चक्षुइन्द्रियावरण के क्षयोपशम से आत्म प्रदेशों का चक्षु आदि के आकार रूप होना, आंतरिक या आभ्यंतर निर्वृत्ति है तथा नाम कर्म के उदय से शरीर पुद्गलों की इन्द्रियों के आकार रूप से रचना होना बाह्य निर्वृत्ति है। आँख में जो काली पुतली (Retina) तथा इसके चारों ओर सफेद है वह
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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