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________________ संसारिणत्रस - स्थावराः ||12|| सूत्रार्थ : पुन: संसारी जीवों के दो भेद हैं- त्रस और स्थावर विवेचन : स्थावर नाम कर्म के उदय से जो जीव एक स्थान पर स्थिर रहते हैं, गमनागमन नहीं कर सकते तथा किसी भी कायिक चेष्टा अथवा संकेत द्वारा सुख-दुख इच्छा आदि को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाते वे स्थावर जीव कहलाते हैं। त्रस : त्रस नाम कर्म के उदय से जो जीव गतिमान है। अपने हित की प्राप्ति और अहित निवृत्ति के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते हैं तथा सुख-दुख इच्छा आदि को अभिव्यक्त कर सकते हैं वे त्रस कहलाते हैं। पृथिव्यम्बु- -वनस्पतयः स्थावराः ||13|| तेजो - वायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः ||14|| सूत्रार्थ : पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय - ये तीन स्थावर जीव हैं। सूत्रार्थ : तेउकाय, वायुकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रय तथा पंचेन्द्रिय त्रस जीव होते हैं। विवेचन : प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय को स्थावर जीव कहा गया है और उकाय, वायुकाय तथा बेइन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को त्रस कहा गया है। काय और वायुकाय जीव वास्तव में स्थावर ही हैं। स्थावर नाम कर्म का उदय होने पर भी उनकी स जैसी गति होने के कारण वे गति त्रस कहलाते हैं। वे उपचार मात्र से त्रस हैं । स दो प्रकार के हैं - लब्धि त्रस और गति त्रस । त्रस नाम कर्म के उदय से बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीव लब्धि त्रस है, ये ही मुख्य त्रस हैं। पृथ्वीकार्य चाँदी खार लाल मिट्टी काली मिट्टी 1. पृथ्वीकाय : जिनका शरीर ही पृथ्वी है, वे पृथ्वीकाय जीव हैं। जैसे मिट्टी, नमक, खार, सोना, चाँदी आदि । पृथ्वीकाय आदि में कितने जीव है यह रूपक के द्वारा संबोध प्रकरण में इस प्रकार बताया है। एक हरे आँवले के समान मिट्टी के गोले में पृथ्वीकाय के इतने जीव हैं कि यदि उन सब में से प्रत्येक का शरीर कबूतर के समान बड़ा किया जाय तो वे एक लाख योजन के जम्बूद्वीप में नहीं समा सकते हैं। 2. अप्काय : जिन एकेन्द्रिय जीवों का शरीर ही जल या पानी है, वे जीव अप्काय के जीव हैं जैसे: कुआँ, तालाब, नदी आदि का पानी, वर्षा आदि आकाश का पानी, बर्फ, ओस आदि । आधुनिक विज्ञान ने शुद्ध जल की एक बूंद में 36450 चलते फिरते 36 सरोवर बर्फ अपकाय
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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