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________________ औदयिक भाव के भेद 4 गति नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव आयुष्य और नाम कर्म के उदय से 4 कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय मोहनीय कर्म के उदय से 3 लिंग (वेद) स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग मोहनीय कर्म के उदय से स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद | वेद मोहनीय कर्म के उदय से 1 | मिथ्यादर्शन मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के उदय से 1 अज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से 1 असंयतत्व विरति का अभाव चारित्र मोहनीय असिद्धत्व शरीर धारण वेदनीय, नाम, गोत्र, आयुष्य 6 | लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, तेज, कषाय मोहनीय + नाम कर्म (कषायोदय पद्म और शुक्ल रंजित योग परिणाम) कुल 21 पारिणामिक भाव के भेद जीव-भव्या-ऽभव्यत्वादीनि च ।।7।। सूत्रार्थ : जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ये तीन तथा अन्य भी पारिणामिक भाव हैं। विवेचन : जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व ये तीन भाव स्वाभाविक है अर्थात् न तो वे कर्म के उदय से, न उपशम से, न क्षय से, और न क्षयोपशम से उत्पन्न होते हैं, ये अनादिसिद्ध आत्मद्रव्य के अस्तित्व से ही सिद्ध हैं। इसलिए पारिणामिक हैं। ___ जीवत्व का अर्थ चैतन्य या जीवित रहना है। जिस परिणाम द्वारा जीव तीनों कालों में सदा जीवित रहता है। ___ भव्यत्व का अभिप्राय है मोक्ष प्राप्ति की योग्यता अर्थात् जिस परिणाम के द्वारा जीव मोक्ष जाने की योग्यता रखता है। ___ अभव्यत्व अर्थात् मोक्ष प्राप्ति की अयोग्यता अर्थात् जिस परिणाम के द्वारा जीव मोक्ष नहीं जा सकता। अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रदेशत्व आदि भी पारिणामिक भाव ही है। पर वे जीव की तरह अजीव में भी होते हैं। इसलिए वे जीव के असाधारण भाव नहीं है। पारिणामिक भाव जीवत्व भव्यत्व अभव्यत्व मोक्ष प्राप्ति की अयोग्यता चैतन्य मोक्ष प्राप्ति की योग्यता OMGANAMRY CAD (Eg.33 Pesona Watuisen VASNA hem.javelibraryadiges Jalma L itteration
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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