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शब्द नय के तीन भेद बताये गये हैं - साम्प्रत, समभिरूढ़, और एवंभूत। किन्तु साम्प्रत शब्द अधिक प्रचलित नहीं है, सामान्यत: 'शब्द' ही प्रचलित है।
____6. समभिरूढ़ नय - पर्यायवाची शब्दों में भी व्युत्पत्ति के आधार पर भिन्न
अर्थ को माननेवाला नय समभिरूढ़ नय है। इस नय में जो शब्द जिस रूढ़ अर्थ में प्रयुक्त है, उसे उसी रूप में प्रयोग किया जाता है। इस नय के अनुसार प्रत्येक शब्द के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। जैसे इन्द्र, शक्रेन्द्र, पुरन्दर आदि शब्द पर्यायवाची है अत: शब्द नय की दृष्टि से इनका अर्थ एक है, परन्तु समभिरूढ़ नय की अनुसार इनके अलग अलग अर्थ है। इन्द्र शब्द से ऐश्वर्यशाली का बोध होता है, पुरन्दर से विनाशक तथा शक्रेन्द्र से शक्ति सम्पन्न का बोध होता
JUSTITUNDU
7. एवंभूत नय - पदार्थ जिस समय अपनी अर्थ क्रिया में प्रवृत्त हो उसी समय उस शब्द का वाच्य मानना चाहिए - ऐसी निश्चय दृष्टि वाला नय एवंभूत नय है। इन्द्र अपने आसन पर जिस समय शोभित हो रहा हो उस समय उसे इन्द्र कहना चाहिए। जिस समय वह शक्ति का प्रयोग कर रहा हो उस समय उसे इन्द्र न कहकर शक्रेन्द्र कहना चाहिए और जिस समय वह नगर का ध्वंस कर रहा हो उस समय उसे पुरंदर कहना चाहिए।
इस प्रकार हम देखते है कि जैन दर्शन का यह नय-सिद्धान्त वाक्यसंरचना, वक्ता की शैली और तात्कालिक संदर्भो के आधार पर वक्ता के अभिप्राय को समझने का सही माध्यम है।
नय के भेद
इंट अपने शव प्रोटि एपा क मान
नैगम
संग्रह
व्यवहार
ऋजुसूत्र
शब्द
समभिरूढ
एवंभूत
संकल्प मात्र समुह की विधिपूर्वक वर्तमान लिंग आदि पर्यायवाची उसी क्रिया
को ग्रहण अपेक्षा से | _ विभाग ___ पर्याय दोषों को शब्दों से रूप परिणमित करने वाला | विचार करने | करने वाला | मात्र को | दूर करके भेदकर पदार्थ | पदार्थ को नय वाला नय
| ग्रहण करने पदार्थ का को ग्रहण । ग्रहण करने वाला नय कथन करने करने वाला वाला नय
वाला नय नय
नय
।। प्रथम अध्याय समाप्त ।।
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