SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यकता नहीं पड़ती है। आकाश में बादलों की घटा बनती हैं, इन्द्रधनुष भी बनता है। ये सहज ही बनते हैं, इसलिए इस बन्ध को वैससिक कहा जाता हैं। यह बन्ध सादि और अनादि दोनों प्रकार का होता है। जीव और पुद्गलों के बीच में जो सम्बन्ध है वह अनादि है। सादि बन्ध केवल पुद्गलों का होता हैं। प्रायोगिक ( प्रयत्न जन्य ) इमारत बनाना, कपड़े सिलना आदि I सादि और सांत आदि और अनादि 3. सूक्ष्मत्व : सूक्ष्मता का अर्थ छोटापन है। यह दो प्रकार का है। a) अन्त्य ( चरम ) सूक्ष्मता और b) आपेक्षित सूक्ष्मता । Jared Beh b) प्रायोगिक बन्ध : प्रायोगिक बन्ध सहज नहीं है। यह जीव प्रयत्नजनित है। इसके लिए प्रयास करना पड़ता है। दर्जी कपडे सिता है, कारीगर इमारत बनाता है, इसमें विभिन्न तत्वों का जो सम्बन्ध है, वह प्रयत्न द्वारा होता है। यह बन्ध सादि और सांत है। बन्ध (पुद्गलों का पारस्परिक सम्बन्ध ) WAANA वैससिक (स्वभाव जन्य) इन्द्रधनुष, बादलों की घटा आदि b) आपेक्षिक सूक्ष्मता : इसमें किसी अपेक्षा से सूक्ष्मता का आकंलन होता है। दो छोटी बड़ी वस्तुओं में तुलनात्मक दृष्टि पाई जाती है। जैसे आम से आंवला छोटा है और आँवले से अंगूर छोटा है। a) अन्त्य या चरम सूक्ष्मता : सूक्ष्मता की वह चरम स्थिति जिसका खण्ड फिर से नहीं किया जा सकता। जैसे परमाणु अन्त्य सूक्ष्मता T जिसका खंड नहीं किया जा सके (परमाणु) सूक्ष्मता (छोटापन) | 122 आपेक्षिक सूक्ष्मता छोटी-बडी वस्तुओं में तुलनात्मक दृष्टि (आम-आँवला-अंगूर)
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy