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________________ पुद्गल का उपकार शरीर भाषा मन श्वासोश्वास उच्छ्वास पांच प्रकार । द्रव्य औदारिकादि । वचन रूप वर्गणा के कारण भाषा वर्गणा के स्कन्ध उदर के भाव द्रव्य वीर्यान्तराय, ज्ञानावरणीय, मति और श्रुत । वीर्यान्तराय ज्ञानावरणीय के के क्षयोपशम क्षयोपशम तथा से मनोवर्गणा अंगोपांग नाम के स्कन्ध कर्म के उदय भाव नि:श्वास गुण दोष | उदर से विचार या बाहर लब्धि निकाले और जानेवाला उपयोग वायु लक्षण भीतर पहुँचाया जानेवाला वायु पुद्गल का उपकार सुख जीवन मरण बाहय बाह्य अंतरंग सातावेदनीय आयुष्य कर्म का बने रहना रूक्ष और कठोर आयुष्य कर्म का समाप्त होना | अंतरंग गर्मियों | असाता में ठंडी वेदनीय हवा या | कर्म कोमल स्पर्श कर्म स्पर्श जीव का उपकार परस्परोपग्रहो जीवानाम् ||21|| सूत्रार्थ : परस्पर के कार्य में निमित्त होना जीवों का उपकार है। विवेचन : परस्पर एक दूसरे के लिए निमित्त बनना जीव का उपकार है। एक जीव हित-अहित के उपदेश द्वारा दूसरे जीव पर उपकार करता है। मालिक पैसे देकर नौकर पर उपकार करता है और नौकर सेवा करके या
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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