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________________ आकाशस्या - Sवगाहः ||18|| सूत्रार्थ : स्थान प्रदान करना आकाश द्रव्य का कार्य है। विवेचन : आकाशास्तिकाय : अवगाह प्रदान करना अर्थात् स्थान देना आकाश का लक्षण है। जो द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल को स्थान या आश्रय देता है उसे आकाशास्तिकाय कहते है। जैसे दूध शक्कर को अवगाह देता है अथवा भींत खूंटी को अवगाह देती है। यह सब द्रव्यों का आधार भूत है। आकाश का उपकार पुद्गल का उपकार शरीर-वाङ्-मन-प्राणा-Sपानाः पुद्गलानाम् ||19|| सूत्रार्थ : शरीर, वाणी, मन, श्वासोश्वास - ये पुद्गल द्रव्यों के उपकार हैं। सुख-दुख जीवित-मरणोपग्रहाश्च ||20|| सूत्रार्थ : सुख-दुख, जन्म-मरण भी पुद्गल द्रव्यों के उपकार हैं। विवेचन : 'पुद्गल' शब्द में दो पद है - पुद् और गल। पुद का अर्थ है पूरा होना या मिलना और गल का अर्थ है - गलना या मिटना । जो द्रव्य प्रतिपल, प्रतिक्षण मिलता- बिछुड़ता रहे, बनताबिगड़ता रहे, टूटता-जुड़ता रहे, वही पुद्गल है। Body of bones, muscles etc. पुद्गल द्रव्य के विभिन्न प्रकार से परिणमन होते रहते है। अतएव उनके कार्य भी अनेक प्रकार के होते हैं। उनमें से कुछ कार्यो का यहाँ उल्लेख किया जाता है जैसे शरीर, वाणी, मन श्वासोच्छ्वास, सुख-दुख, जन्म, मरण आदि । Animals स्थान देने में 1 सहायक शरीर : शरीर निर्माण का कारण पुद्गल है । औदारिक वर्गणा से औदारिक शरीर वैक्रिय वर्गणा से वैक्रिय शरीर, आहारक वर्गणा से आहारक शरीर, तेजोवर्गणा से तैजस शरीर और कर्म वर्गणा से कार्मण शरीर बनता है। अतः पांचों शरीर पौदगलिक ही है । भाषा : भाषावर्गणा वाणी का निर्माण करती है। भाषा दो प्रकार की होती है - a) भावभाषा और b) द्रव्यभाषा । Immobile ora 14
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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