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________________ सागरोपम ||40।। सूत्रार्थ : सानत्कुमार की आयु दो सागरोपम होती है। अधिके च ||41|| सूत्रार्थ : माहेन्द्र में कुछ अधिक दो सागरोपम होती है। परतः परतः पूर्वा-पूर्वा-ऽनन्तराः ||42।। सूत्रार्थ : माहेन्द्र के बाद के देवलोकों में अपने-अपने से पहले के देवलोक की उत्कृष्ट आयु ही अपनी रूप जघन्य आयु होती है। विवेचन : उपर्युक्त सूत्र 33 से लेकर 42 सूत्रों तक वैमानिक देवों की उत्कृष्ट तथा जघन्य आयु का वर्णन किया गया है। जो तालिका के रूप में इस प्रकार है - वैमानिक देवलोकों की जघन्य तथा उत्कृष्ट आयु देवलोक के नाम जघन्य 1. सौधर्म 1 पल्योपम 2. ईशान 1 पल्योपम से कुछ अधिक 3. सानत्कुमर 2 सागरोपम 4. माहेन्द्र 2 सागरोपम से कुछ अधिक 5. ब्रह्मलोक 7 सागरोपम 6. लान्तक 10 सागरोपम 7. महाशुक्र 14 सागरोपम 8. सहस्रार 17 सागरोपम 9. आनत 18 सागरोपम 10. प्राणत 19 सागरोपम 11. आरण 20 सागरोपम 12. अच्युत 21 सागरोपम उत्कृष्ट 2 सागरोपम 2 सागरोपम से कुछ अधिक 7 सागरोपम 7 सागरोपम से कुछ अधिक 10 सागरोपम 14 सागरोपम 17 सागरोपम 18 सागरोपम 20 सागरोपम 20 सागरोपम 22 सागरोपम 22 सागरोपम
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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