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________________ समय देशना - हिन्दी ६७ नागफनी का रस, इन द्रव्यों का मिश्रण कर दीजिए और मन्द धौकनी से धौकिये, तो स्वर्ण धातु निर्मित्त हो जाती है। वह भी कब? इतने द्रव्यों का मिश्रण करने से मन्द अग्नि द्वारा तपाने पर सोना बनता है। पर बनता तभी है, जब पुण्य होता है। ऐसे ही सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के गुणों का मिश्रण कीजिए, धर्मध्यान/ शुक्लध्यान की अग्नि की उपयोग रूप आँच पर तपाइये, काललब्धि होगी तो नियम से तेरी भगवान्-आत्मा प्रगट हो जायेगी। ज्ञानी ! अशुद्ध ही शुद्ध को प्रगट करता है। तू अशुद्ध कभी था ही नहीं। अशुद्ध सौपाधिक दशा है। शुद्ध को तू जो जान रहा था वह तो शुद्ध था। जो शुद्ध को निकाल रहा था वह अशुद्ध था। शुद्ध था, तो अशुद्ध से शुद्ध को निकाला । लेकिन टोकरी में लड्डू थे, तभी तो कपड़ा ढंका था । कपड़े को हटाने से लड्डू नहीं निकले । लड्डू थे, इसलिए कपड़ा खोलकर तुमने लड्डू निकाल लिये । हे मुमुक्षु ! आत्मा शुद्ध सत्तावान् शक्तिवान है, इसमें कर्मों का कपड़ा पड़ा है। ये कपड़ा हटा दो, तो भगवान-आत्मा विराजित है । यदि सोपाधिक दशा को गौण कर दे, तो तू शुद्ध त्रैकालिक है। घी का स्वाद कैसा है ? जैसा है, वैसा है। आप हमसे पूछते हो, कि महाराज ! निर्ग्रन्थ दशा का स्वाद कैसा है ? जैसा है, वैसा है। जानना ही है, समझना ही है, तो बनकर देख लो। आत्मा का स्वभाव "जो सो दु सो चेव'' । भगवान् महावीर स्वामी की जय ।। ggg आचार्य-भगवान् कुन्दकुन्द स्वामी ने महान अध्यात्म ग्रन्थ 'समय प्राभृत' में जीव के परम-शुद्ध स्वरूप की व्याख्या की है। जो जीव झलक रहा है, वह मिश्रधारा है, और जो जीव का शुद्धस्वरूप है, वह अमिश्रधारा है। पर्यायगत जो अवस्थायें हैं, वह पुद्गल सम्बन्ध है। आत्मा जो है, वह सम्पूर्ण पुद्गल द्रव्य से शून्य है। छठवीं गाथा की आचार्य अमृतचन्द्र की टीका नय और न्याय से परिपूर्ण और अध्यात्म की गहराई से समन्वित है। एक-एक शब्द पर ध्यान देना । आत्मा की कर्मातीत धारा को निहारो, चिद्रूप अनुभूति की ओर निहारो। मिश्र दूध की धारा में जल के होने पर भी प्रत्येक ज्ञाता को ज्ञात रहता है। आँखों से तो दूध का वर्ण ही दिखता है, पर श्रद्धा में मालूम है कि पानी कितना है। फिर भी रंग तो क्षीररूप ही है । रंग क्षीररूप अवश्य है, पर परिपूर्ण क्षीर नहीं है। ऐसे ही संसार अवस्था में एक वैद्य नाड़ी देखकर 'जीव है' यह ज्ञान कर रहा है। पर 'नाड़ी' जीव नहीं है। आत्मा की अनुभूति आत्मा से ले रहा है, पर आत्मा का वेदन तेरी आत्मा ले रही है। पुद्गल के सहयोग से वैद्य ने नाड़ी को पकड़ा है और उसकी चाल का अनुभव कर रहा है। अनुभवनकर्ता कौन है ? जो यह कहते हैं कि मैं आत्मा का वेदन नहीं जानता हूँ। जो नाड़ी पकड़कर आपने अंगुली रखी है हाथ पर, उसका वेदक कौन है ? जो रखा है, वह भी पुद्गल है; जिस पर रखा है, वह भी पुद्गल है। पुद्गल से ही पुद्गल के माध्यम से ज्ञानी आत्मा ने मिश्र अवस्था का वेदन किया है। क्योंकि आप जो नाड़ी से निहार रहे हो, वह नाड़ी को निहार रहे हो कि जीव को जान रहे हो? सत्य बताना, किसको निहार रहे हो? चाल नाड़ी की है, पर चल किसकी रही है ? वह चलनेवाला दूसरा ही है। जैसे आप नाड़ी की चाल से अनुमान लगा लेते हो, कि नाड़ी है। अनुमान भी प्रमाण है, वह परोक्ष प्रमाण है। सिद्धांत से वह अनुमान भी आत्मा से ही किया जाता है। "साधनात्साध्यविज्ञानमनुगानम्" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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