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समय देशना - हिन्दी
२६६ कलम चलाई / इतने निर्लोभी होना कितना मुश्किल है। ऐसे-ऐसे विद्वान् हुए, जो घर का काम करने के लिए घर का दीपक जलाते थे, और सरकारी काम करने के लिए सरकारी दीप जलाते थे। बोले सरकारी काम हो गया, अब इस दीपक को बन्द करो । ऐसे भी लोग हुए । ऐसी निस्पृहवृती हो, तब कहना, बद्ध को निर्बद्ध समझो, निर्बद्ध के समझते समय भी बन्ध का ध्यान रखो । मैंने दो कथन कर दिये । सिद्धान्तशास्त्र बद्ध में बद्ध समझो, अध्यात्मशास्त्र कहा है कि बद्ध में निर्बद्ध समझो । एक ही गाथा में दो बातें कहाँ मिलेगी?
मग्गण गुण ठाणेहिं य, चउदसहिं हवंति तह असुद्धणया।
विण्णेया संसारी, सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया ।।१३।। द्रव्य संग्रह ॥ दो बातें आ गई, मार्गणास्थान, गुणस्थान। ये जीव के बद्ध अवस्था संसारी में हैं, लेकिन 'सब्बे सुद्धा हूँ सुद्धणया' अर्थात् लेकिन शुद्धनय से सभी जीव शुद्ध हैं, उसे भी जानो, उसे भी मानो । लेकिन बद्ध में निर्बद्ध को मानकर बैठ जाओगे तो पुरुषार्थ समाप्त हो जायेगा।
कलश कह रहा है - जैसे कि सम्यक्स्वभाव का अनुभव किया है, कर रहा है, सम्यक् स्वभाव का अनुभव करो चारों ओर से उद्योतमान होकर । बद्ध है, स्पष्ट है, फिर भी आत्मा में प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं है।
तालाब में कमल है। हे कमल!त पानी में रहे मझे विकल्प नहीं है। पानी का स्पर्श भी कर रहा तब भी विकल्प नहीं है। फिर भी, हे ज्ञानी ! पानी पर तैर ही पायेगा, पानी में पानी नहीं हो पायेगा । सार समझिये। पानी में तेल छोड़ दिया । जैसे ही पानी में तेल छोड़ा, हे तेल ! तू नीर पर तैर ही पायेगा, नीरभूत नहीं हो पायेगा। नीर तो नीरज है। यहाँ नीरज का अर्थ कमल नहीं लेना। नीरज रज यानी कण, धूल नीर जरूर काला दिख रहा है। नाली के पानी को आँखों से देखता है तो कीचड़मय दिखता है। आँखों से न देखकर अंतःकरण से देखे, तो नीरज है। कालापन पानी में नहीं है, कालापन मिट्टी में है। मिट्टी छट जाये, तो नीरज है। पानी का धर्म मल नहीं। मल पानी में पड़ा है, सो पानी गन्दा दिख रहा है। हे कर्मो ! तुम बंधे रहो, चिपके रहो, तुम बंध ही पाओगे, पर मेरी आत्मा को कर्म नहीं बना पाओगे यह है समयसार । इन कर्मो से कह देना
आत्मा में रह सकते हो, पर आत्मा को अपने रूप नहीं बना सकते, मुनिराज चाहे जब बनना, बन लेना, परन्तु श्रद्धा तो आज से ही स्थापित कर लेना कि आत्मा कभी कर्म नहीं बनेगी और कर्म कभी आत्मा नहीं बनेंगे, कमल पानी में उग ही सकता है, पर कमल पानी नहीं बन सकता । कीचड़ पानी हो सकती है, पर पानी कभी कीचड़ नहीं हो सकता है। मल का कारण कीचड़पना है, निर्मली डाल कर देखो, पानी तो पानी है। आत्मा कैसी है?
नीरजीभाव स्वरूपोऽहम, ब्रह्मानंद स्वरूपोऽहम् । नीर वी भाव स्वरूपोऽहम् ।
आत्मा नीरज स्वभावी है, नीरज स्वभावी है । मेरा स्वभाव रव नहीं है रव यानी आवाज । अपने ध्यानसूत्र को बंद करके नीरज स्वरूप में चले जाना। || भगवान् महावीर स्वामी की जय ॥
qog श्रमण संस्कृति के लिए एक बहुत बड़ा श्रेय प्राप्त हुआ है आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी का । आत्मविद्या, यह एक गूढ़ विद्या है। जितने जीव अपने स्वभाव से विचलित हो रहे हैं, कषायभाव में लीन हो रहे हैं, यह अन्दर की विद्या का अभाव है। जीव यह समझता है, कि मैं अमुक व्यक्ति का बुरा कर दूंगा । पर उसे यह समझ में नहीं आता कि जिसका हम बुरा करने जा रहे हैं, यदि उसका प्रबल पुण्य का नियोग है, तो
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