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________________ २६८ समय देशना - हिन्दी हो जाते हैं ? काला किससे पड़ा? उपादान शक्ति बर्तन में थी । यदि थी, तो गर्मी में क्यों नहीं काला पड़ा था, बादलों से क्यों पड़ा ? इसी प्रकार से हम लोग अध्यात्म में जीने वाले तत्त्वज्ञानी हैं, पर सिद्धान्त को खोने वाले नहीं है। जिनवाणी तो यह कह रही है, कि जिस घर में गर्भवती माँ हो, उसे अधिक-से-अधिक जिनालय या घर पर ही रहना चाहिए, बाजार आदि भी नहीं जाना चाहिए। वहाँ के भी संस्कार पड़ते है । घर में ही अधिकसे-अधिक णमोकार की जाप करना चाहिए । सिद्धान्त ग्रन्थ को भी ऐसे काल में नहीं पढ़ना कभी । मात्र सामान्य ग्रन्थ पढ़ो | भक्ति, आराधना खूब करो । सामायिक के काल में लिखा-पढ़ी करोगे, तो झगड़ा खूब होंगे । 'धवला की नौवीं पुस्तक में लिखा है कि जो कालाचार, द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव को छोड़कर, ज्ञान के लोभ में श्रुत का अभ्यास करेंगे, तो कलह, क्लेश और निरोगता की हानि, सम्बन्धियों की हानि तक होती है। 'धवला' में स्पष्ट लिखा है । सिद्धान्त ग्रन्थों को सही काल में ही पढ़ना चाहिए, नहीं तो विद्वानों को विक्षिप्त होते आपने भी देखा है एवं असमाधिपूर्वक मरण होता है । I नास्ति त्रिकाल योगोऽस्य, प्रतिमा चार्क सन्मुखः । रहस्यग्रंथसिद्धान्त श्रवणे नाधिकारिता ॥ ५४७ भावसंग्रह || महिलाओं को सामूहिक रूप से खड़े होकर कायोत्सर्ग नहीं करना चाहिए। माताजी को योग धारण की आज्ञा नहीं है । वर्षायोग, शीतयोग, ग्रीष्म योग में मुनिराज सूर्य के सामने प्रतिमायोग धारण करते हैं। ऐसा श्रावकों को अधिकार नहीं है । अभिप्राय निर्वस्त्र नहीं होना चाहिए । प्रतिमायोग धारण नहीं कर सकते। जिस प्रकार मुनि विधि लेकर आहारचर्या में ऐसा निकलते गृहस्थों का विधान नहीं है। मुनिराज का तप है, आचार्य का मूलगुण है । रहस्यग्रन्थ को सुनने का अधिकार श्रावक को नहीं है। मन में कषायभाव हो, चंचलता हो, गरिष्ठ भोजन किया हो, विषाद मन में हो, प्रमाद सता रहा हो, शोकाकुल, हो ऐसे काल में सिद्धान्त - शास्त्र नहीं पढ़ना, अन्यथा विपरीत अर्थ लगा दोगे । एक छोटे से दृष्टान्त के माध्यम से समझें, अपने एक विद्वान जब षटखण्डागम पर काम कर रहे थे। अब विद्वान गरीब न हो तो कौन हो ? यह विद्वान समाज पर आश्रित थे। एक पंक्ति का अर्थ करते तो अर्थ लगता ही नहीं। कहीं पैसा कमाने जायेंगे तो ग्रन्थ का काम नहीं हो पायेगा और ग्रन्थ का काम कर रहे हो तो पैसा नहीं आ रहा है। आप समाज को तो जानते ही हो। गाने-बजाने वाले को तो लाखों दे दें, पर विद्वान् को सौ रुपये पकड़ायेंगे । संगीतकार को लाख पुजारी को हजार पकड़ाते हैं। आपकी मानसिकता ऐसी बन चुकी है । मैं उस विद्वान् की निष्पृहता की बात कर रहा हूँ । एक दिन में कितने मिलते थे? बहुत कम पैसे मिलते थे, उस समय डेढ़ रुपये पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री को मिलते थे । काम करते-करते क्या हुआ, कि एक कारिका का अर्थ नहीं जम रहा था। तीन दिन निकल गये । उनको पैसा दिन से नहीं, एक पेज के हिसाब से दिया जाता था, जब उनका तीन दिन में एक पेज नहीं हो पाया, तब उनके पैसे गये कि नहीं ? इसी बीच में पत्नी ने पं. जी का चेहरा उदास देखा। उनकी धर्मपत्नी से मिलो, कितनी श्रेष्ठ थी। पूछा क्या बात है? पं. जी बोले, शब्दकोष चाहिए / पैसा है नहीं / उसके बिना काम नहीं चलता / उन्होंने अपने हाथ की सोने की चूड़ी उतार कर दे दी लो इनको बेच दो और ले आओ शब्दकोष । इसी बीच में एक विद्वान् पहुँचे, पूछा, क्या हो गया ? कुछ नहीं, तीन दिन से एकशब्द का अर्थ नहीं हो रहा । 'तो आगे बढ़ जाते न । घर कैसे चलाओगे? आप का परिवार कैसे चलेगा ? 'बोले' भैया ! परिवार चले या न चले, लेकिन हम कलम नहीं चलायेंगे। चौथे दिन जब उनके मस्तिष्क में विषय जम गया, उन्होंने तभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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