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________________ समय देशना - हिन्दी २६१ नानत्व नानत्व-अपेक्षा अभूतार्थ है। समयसार जी में कहा जा रहा है - हे जीव ! नानत्वरूप में राग है, नानत्व रूप में द्वेष है। कोई सोने की चमक को देख रहा है, किसी को सोने की चमक ही अच्छी लग रही है। एक को वजन अच्छा लग रहा है, आपने दो गुणों को भिन्न-भिन्न करके देखा तो आपने एक पर्याय में दो परिणाम करके भिन्न-भिन्न बन्ध किया। एक जीवद्रव्य को देखकर, एक पुद्गल द्रव्य को देखकर अथवा एक ज्ञायकभाव को देखकर आपने जीवद्रव्य को देखा, एक जीवद्रव्य को देखते-देखते एक ने पतिरूप देखा, एक ने पुत्ररूप देखा, एक ने पिता के रूप में देखा, एक ने भाई के रूप में देखा । अहो देखनहारो ! तुमने जिस दृष्टि से निहारा, उस दृष्टि से राग-द्वेष होगा। जीवद्रव्य तो एक था । यदि एकद्रव्य भाव से देखते, तो न पुत्रभाव होता, न पतिभाव होता, न भाई भाव होता। इतने भावों का अभाव होता है, तद्रूप आश्रव का अभाव होता। गहरे में जाइये। जितने विशेषों को देखोगे, उतना विशेष बन्ध होगा। आत्मा अविशेषभावी है। ये विशेषण, ये रिश्ते, सम्बन्धरूप हैं; स्वभाव-रूप नहीं हैं। रिश्ते अस्थाई हैं, ये सम्बन्ध अस्थाई है। घर में होते क्लेश को देखकर क्लेश की पर्यायों को न देखता, क्लेश के द्रव्य को न देखता, क्लेशरूप गुण को न देखता, वरन् क्लेश करनेवाले में बैठा जीव, जो भगवत्त स्वरूप है, उसे देखता, तो एक क्षण में साम्यभाव आ जाता। ये क्लेश क्या करेगा मेरे साथ। ये क्लेश नहीं कर रहा। यह संक्लेश हो रहा है। मैं इसके संक्लेश को क्लेश मान रहा हूँ, यह तो संक्लेश में बैठा हुआ है, इसके संक्लेश में मैं सहयोगी क्यों बनूँ? तू अपना संक्लेश कर । आप शांति से बैठ जाओ। धन्य है उनकी महिमा। आप संक्लेश को भी क्लेश रूप में भोग रहे हो। भोग कितने प्रकार के है ? ये भी तेरा भोग हो गया, किसी के द्वारा गाली दी जा रही थी, मैं उसको सुन रहा था, और सुनते-सुनते उसके मन में भाव आ गये कि इसने मुझे गाली क्यों दी? यानी तूने उसके गालीरूप शब्द-वर्गणाओं का भोग किया, तभी तो अनुभव में बोल पड़ा। बिना अनुभव किये यह बोला कैसे ? नमक का स्वाद खारा होता न ? आपने अनुभव करके चखकर ही बोला, या जानकर बोला ? ऐसे ही, हे मुमुक्षु ! रसना इन्द्रिय के विषय को तो हर कोई कहता है कि तूने भोग कर लिया। गाली कर्ण-इन्द्रिय का विषय थी, कि नहीं? चलिए आप समयसार की भाषा में । गाली कर्णइन्द्रिय का विषय बनी थी। विषय उसी के लिए बनती है, जिसमें राग होता है । वस्तु विषय नहीं है, इतना ध्यान रखना । वस्तु तो वस्तु है । वस्तु तो विषय उनके लिए है, जो विषयी है । यह पेन मेरे लिए है, घोड़े के लिए पेन नहीं है। रोड पर पड़ा मल का पिण्ड आपके लिए हेय है; परन्तु सुअर के लिए हेय नहीं, उपादेय है। आपने क्या मानकर रखा है, कि अष्टमीचर्तुदशी आई, तो आपने कुछ त्याग करने को धर्म मान लिया। आप बोलने की वस्तु को भी छोड़ो, सुनने की वस्तु को भी छोड़ो, देखने की वस्तु को भी छोड़ो, सूंघने की वस्तु को भी छोड़ो, कुछ करने को भी छोड़ो, तब तुम्हारा व्रत पूरा होगा। देखो मेरा काम आपको सुनाना है। आपको सुनकर स्वीकारना है। जब जिस पर्याय में पालन कर सको, कर लेना; परन्तु इतना समझ तो लो, कि ऐसा भी होता है। विशेषणों को देखोगे तो विषाद होगा, विशेषणों को गौण करके विशेष मात्र को देखोगे, तो विषाद नहीं होगा, हर्ष नहीं होगा, वरन् मध्यस्थ होगा। ___ आपने गाली को कर्णइन्द्रिय का विषय बनाया। किससे भोगा? कर्ण इन्द्रिय से भोगा । मिर्च खाई, आँख में आँसू आये, नाक भी बहने लगी, तब भी मिर्च नहीं छोड़ रहा है। धिक्कार हो, खाते समय सी सी, और मल-विसर्जन के काल में भी वहाँ पर उसको कष्ट हो रहा था, फिर भी मिर्च नहीं छोड़ी। अब बताइए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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