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________________ समय देशना - हिन्दी २६० आचार्य भगवान् अमृतचन्द्रस्वामी ग्रन्थराज समयसार जी की, चौदहवीं गाथा में आत्मा के पाँच धर्मों का वर्णन कर रहे हैं। आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने पूर्व में आपको संकेत किया यह आत्मा जैसे कि मिट्टी नाना आकारों में है, नानत्वपना भी मिट्टी में है । घट-कपाल आदि की अपेक्षा से नानत्वभाव है। पर, उन सभी नानत्वपने में मृतिका वही है, पर्याय अपेक्षा इसमें नानत्वभाव भूतार्थ है, द्रव्य अपेक्षा अभूतार्थ है, एक ही समय में एक ही द्रव्य में भूतार्थपना व अभूतार्थपना विद्यमान है। इस बात का व्याख्यान कर रहे हैं । उसी प्रकार से जीव द्रव्य मनुष्य, तिर्यञ्च आदि पर्यायों को देखते है तो नानत्वभाव है और जीव द्रव्यमात्र को देखते हैं, तो एकत्व भाव है। जैसे समुद्र में लहरें उत्पन्न हो रही हैं और नष्ट हो रही हैं, उन लहरों की उत्पत्ति और विनाश की अपेक्षा से उसमें अन्यत्वपना भूतार्थ नहीं, अभूतार्थ है। उसी समुद्र में सन्तति अपेक्षा कथन करेंगे तो, सागर वही है, नित्यपना है । ऐसे ही आत्मा में नाना पर्यायों का परिणमन है, इसलिए नानत्वपना है, अनित्यपना है, परन्तु आत्मा वही है, इसलिए नित्यपना है। इस प्रकार से आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने इस विषय का उल्लेख किया। आगे विशेषता, अविशेषता । आत्मा विशेष भी है, आत्मा अविशेष भी है । विशेषपना भूतार्थ भी है, विशेषपना अभूतार्थ भी है। अविशेषपना भूतार्थ है, अविशेषपना अभूतार्थ भी है। दोनों धर्म एक द्रव्य में युगपत हैं। वह किस प्रकार से ? आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं, जिस प्रकार से सोना है । कंचन जो स्निग्ध है, पीत है, गुरुत्वपने से युक्त है, इन धर्मों को ग्रहण करने की अपेक्षा से वह जो विशेषता है, वह भूतार्थ है। सोने में पीतपना, स्निग्धपना, गुरुत्वपना भूतार्थ है । ध्यान दो, ऐसा विश्व में कोई द्रव्य नहीं है, जो सामान्य से रहित हो और ऐसा कोई द्रव्य नहीं है, जो विशेष से रहित हो। जहाँ-जहाँ सामान्य है, वहाँवहाँ विशेष है । जहाँ-जहाँ विशेष है, वहाँ-वहाँ सामान्य है । व्याख्यान एक काल में या तो सामान्य का होगा, या विशेष का होगा। पर्याय जो-जो होती है, वह विशेष होती है, द्रव्य जो होता है, वह सामान्य होता है । जैसे - वृक्षत्व सामान्य है । नीम, शीशम इत्यादि जो शब्द बोले, वे विशेष गुण हैं । जहाँ-जहाँ विशेषण है, वहाँ-वहाँ विशेष भी है। मनुष्य है जीवद्रव्य सामान्य । स्त्री, पुरुष, नपुंसक ये कथन विशेष हैं, विशेषण लगा दिया । जीवद्रव्य है, जीव अपने आप में सामान्य है । उस जीव में आपने गुणस्थान, मार्गणा स्थान अपेक्षा जो कथन किया है, वह आपने विशेषण जोड़ दिया । सिद्धान्त शास्त्र कहते हैं जहाँ जीवों की खोज की जाती है, वह है मार्गणास्थान । जहाँ जीवों के भावों की गणना की जा रही है, वह है गुणस्थान । ये मार्गणास्थान, गुणस्थान आदि का व्याख्यान जीव का विशेष कथन है । परन्तु जीव तो सामान्य द्रव्य है । सोने में पीतपना है, सोना वजनदार होता है, यह सत्य है। सोने में स्निग्धपना होता है, यह भी सत्य है । इन वर्णों को देखोगे तो सोने में नानापना दिखेगा और स्वर्ण धातु मात्र देखोगे, तो एक है। इन पर्यायों को देखते हुए सम्पूर्ण विशेषण को देखोगे तो जो कंचन विशेषण है, वह कंचन स्वभाव से भिन्न है क्या ? आत्मा, शुद्ध स्वभावी है, आत्मा ज्ञान स्वभावी है, आत्मा दर्शनस्वभावी है, आत्मा वीर्य स्वभावी है, आत्मा नानत्वरूप है आत्मा एकत्वरूप है, आत्मा अमूर्तिक है, आत्मा मूर्तिक है, आत्मा चेतनत्व है, आत्मा अचेतनत्व है, आत्मा अस्तिरूप है, आत्मा नास्तिरूप है, आत्मा एक स्वभावी है, आत्मा अनेक स्वभावी है, आत्मा ज्ञायक है, आत्मा ज्ञाता है, आत्मा प्रमाण है, आत्मा प्रमेय है इत्यादि धर्म आपने कहे हैं, ये किसमें है ? आत्मा में हैं । नाना धर्मो की अपेक्षा आत्मा नानत्वभूत है, परन्तु नानाधर्म किसमें है? एक आत्मा में हैं। आत्मा एकत्वरूप है। जो नानत्व रूप भी है, एकत्व अपेक्षा से भूतार्थ है; नानत्व रूप है, वह एकत्व अपेक्षा से अभूतार्थ है । पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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