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________________ समय देशना - हिन्दी २३० सरल में शब्द बहुत होते हैं परन्तु सार कम होता है। गूढ में शब्द कम होते हैं, परन्तु सार अधिक होता है। इसका नाम अध्यात्मशास्त्र है, गूढ विद्या । यहाँ अध्यात्म में शब्द को 'ब्रह्म' कहा जाता है । जो ब्रह्म को उद्घाटित कर देता है, वह शब्दब्रह्म है, जिससे आत्मब्रह्म की पुष्टि होती है, सिद्धि होती है। आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे है, कि आचार्य-भगवान् कुन्दकुन्द स्वामी ने सूत्र दिये हैं। उन सूत्रों का मंथन कैसे किया है, यह तो आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी की आत्मा समझ रही होगी। इतने गूढ अर्थों को कैसे निकाल कर रखा है ? ___ भूतार्थ है, वही अभूतार्थ है। आपके लिए आपकी धर्मपत्नी ने मौसमी का फल लाकर दे दिया, बीज आ गये, तो आपने बीज को निकालकर फेंकना शुरू कर दिया । क्यों ? अभूतार्थ है । वे ही बीज जमीन में बोये जायें तो भूतार्थ हैं, मुख में जाये तो अभूतार्थ हैं। "किं भूतार्थं, किं अभूतार्थं" भूतार्थ क्या, अभूतार्थ क्या । वही वस्तु भूतार्थ है, वही वस्तु अभृतार्थ भी है । इसलिए यह जो सूत्र है भूतार्थ-अभूतार्थ का, इतना गहरा सूत्र है कि लोक में जहाँ भी लगाना चाहो, लगा लेना। इस सूत्र के बिना आपकी गृहस्थी चलती नहीं, और विश्व का कोई भी व्यापार चलता नहीं। अब होता क्या है न, कुछ लोगों ने एक रूढ़ि का शब्द अपना लिया-'समयसार तो मुनियों का विषय है। यह शुद्ध रूढ़ि है । मेरा प्रश्न है आपसे, यह 'समयसार ग्रंथ आपके चिंतन का विषय नहीं है क्या ? जब तक चिन्तन नहीं किया और आपको ये रटाया गया बार-बार, तब तक आप अनोखी विद्या से अपरिचित रहे । भावों की अनोखी विद्या है । यह मुनियों के चिंतन का विषय नहीं, यह मन के चिंतन का विषय है । मन चाहे मुनि बनकर चिंतन करे, चाहे गृहस्थ बनकर चिंतन करे, यह तो भगवान् बनानेवाला विषय है । गहनतम सूत्र भरे हुए हैं । देश में आपको ऐसे ही जीव मिलेंगे, जो कहेंगे कि यह मुनियों का ग्रंथ है। ऐसा मान सकते हैं। समयसारभूत परिणति तो निग्रंथ योगी की भी है। समयसार की उपासना तो श्रावक की ही है। उपासना करे और उप हा हा उपासना करे, और उपास्य को न जाने तो, उपासना किस की ? आप उपासना करते हो, कि उपास्य को पहले जानते हो? उपास्य के ज्ञान किये बिना उपासना करे तो ज्ञान की विपरीतता में चला जायेगा । हमें पहले उपासक बनना चाहिए, फिर उपासना करना चाहिए । उपास्य को जाने बिना उपासना प्रारंभ है, इसका मतलब है कि कहीं-न-कहीं अज्ञानता से युक्त है। उपासना नहीं करना, पहले उपास्य को पहचानना । पहले ज्ञान होता है, फिर श्रद्धान होता है, फिर सम्यक्ज्ञान होता है । पहले तत्त्वबोध, तत्त्वश्रद्धान, फिर तत्त्व का सम्यक्ज्ञान होता है । इसलिए जानकारी तो लेना भूतार्थ-अभूतार्थ की । और आपको लगता अवश्य है, कि यह गहनतम ग्रंथ है, हम भ्रमित हो जायेंगे। ऐसा कोई विषय नहीं है, इतने दिन से आप सुन रहे हैं । आप भ्रमित हो गये क्या ? समयसार तो पढ़ना चाहिए, पर गुरु मुख (निग्रंथ) से पढ़ना चाहिए, एकान्त से नहीं पढ़ना चाहिए। यह शुद्ध कथन करो।'समयसार' ग्रंथ के अध्ययन का निषेध कर दोगे, तो एक विद्या हमारी समाज से भिन्न हो जायेगी | इस ग्रंथ के अध्ययन का निषेध न करके, इसकी योग्यता का कथन करना चाहिए । मैं यह कह रहा हूँ, कि जो वस्तु गुरुमुख से निकलना चाहिए थी, वह अगुरु के मुख से निकल रही है। हमने सुना है राजगृही में कुछ गर्म पानी, ठण्डे पानी के कुण्ड हैं। ध्रुव सत्य यह है, कि इस हाथ पर चूना रख दिया जाये, अग्नि जलाई नहीं जायेगी, चूना रखा जायेगा, उस पर पानी डाल देना अथवा गंधक पर पानी डाल दो, तो क्या होगा? ऐसे ही 'कुण्ड मे जो गर्म पानी आ रहा है, पर्वतों की चट्टानों पर कहीं गंधक है, उन गंधकों से टकराकर पानी आता है, वह गर्म हो रहा है। ऐसे ही रागी, भोगी के श्री मुख से टकराकर जिनवाणी आयेगी तो वह कहीं-न-कहीं गर्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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