________________
६
समय देशना - हिन्दी गोमटेश में सभी महाराज आचार्यों ने कहा कि 'विशुद्धसागर' से अध्यात्म सुनना है। पर मैं सोच रहा था, कि इतने बड़े-बड़े आचार्यों के सामने में क्या समयसार सुनाऊँगा, क्या अध्यात्म सुनाऊँगा। पर उस दिन लगा मुझे कि अध्यात्म कोई शक्ति है । किया प्रवचन । आचार्य वर्द्धमानसागर, आचार्य पद्मनंदि जी, आचार्य विरागसागर जी महाराज, तीनों आचार्य भगवन्तों ने समीक्षा की, खूब घुमाया, पर आखिरी में यही कहा कि सत्य यही है।
'समयसार' ग्रन्थ का नाम नहीं है, ग्रन्थ का नाम 'समय पाहुड़' है । इस 'समयपाहुड़' ग्रन्थ में समयसार की बात है । समयसार कागज नहीं होता, समयसार शब्द नहीं होता, वाणी नहीं होती। समयसार द्रव्यमान नहीं होता और समयसार, ज्ञानी ! रागादि भाव भी नहीं होता। समयसार कथंचित् भावमन भी नहीं होता। समयसार चिद्ज्योतिस्वरूप है । स्वरूप का वर्णन करनेवाला यह 'समयपाहुड' ग्रंथ है । 'समय' यानी आत्मा, 'सार' यानि रत्नत्रय । रत्नत्रय से मण्डित आत्मा 'समयसार' हैं। समय यानी अरहंत । जो निजानंद में लवलीन आत्मा है, वह समयसारभूत आत्मा है । समय यानि सिद्ध । जो परम स्वसमय में लवलीन हो गये, वे द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म से पूर्ण विमुक्त हो चुके हैं। वही है सार उसका, वही शुद्ध आत्मा ही समयसार है।
समय यानि पंचाचार | पंचाचार से युक्त सारभूत जो है आत्मा । आचार्य-भगवन्त की आत्मा ही समयसार है। समय यानि आगम । आगम के स्तर को जाननेवाले उपाध्याय परमेष्ठी की जो आत्मा है, वही समयसार है। समय यानि साधना । जो समय को, समय पर समझकर निजात्मा में लवलीन है, ऐसा साधुपरमेष्ठी समयसार है । पंचपरमेष्ठी समयसार हैं।
समय यानि समय । जिसमें स्वात्मा 'समय' का वर्णन हो, ऐसा जिन-आगम, जिनेन्द्र की कही हुई जो वाणी है, वही है समयसार । सरस्वती है समयसार ।
समय यानि आत्मा । जो आत्मा का ध्रुव स्वभाव है, वही समयसार है। इन अर्थों में ग्रन्थ के पृष्ठों पर लिखा समयसार कहीं नहीं है। भ्रमित नहीं होना। ये विशुद्धसागर नहीं बोल रहे है। 'समयसार' पर 'अध्यात्म अमृत कलश' के रूप में आचार्य 'अमृतचन्द्र स्वामी' का एक स्वतंत्र ग्रन्थ है। पं. जगमोहन लाल शास्त्री वाला नहीं समझ लेना, वो तो अभी लिखा है। इस पर विशाल संस्कृत टीका ग्रन्थ परम अध्यात्म तरंगिणी का है। उस ग्रन्थ में समयसार के आठ अर्थ निकाले। तो ऐसे समयसारभूत आत्मा में कैसे प्रवेश करें? तो कुन्दकुन्ददेव कहते हैं, हे योगीश्वर ! अब तू 'समय' को समझ, परन्तु समय पर ही समझना । देखो, भाषा समयसार की है, इसलिए इसे अन्यत्र नहीं ले जाना । इस बात का सभी को भय लगता है । क्योंकि मैंने समयसार को ऐसा कहा, तो ये लोग ही कहेंगे, कि व्यवहार का लोप नहीं हो जायेगा? जो पच्चीस वर्ष से समयसार का पाठ कर रहा था, उसके सामने मैंने समयसार निकाला और कहा, अब सनो समयसार । हाथ जोड़ने लग गये महाराज ! व्यवहार का लोप नहीं हो जायेगा ? हमने कहा आज समझ में आया है। सोलापुर की घटना है। पंडित जी हाथ जोड़ कर कहने लगे - इतना गहरा तो हम भी नहीं बोलते। मैंने कहा कि तुम निश्चयाभास में बोलते हो, इसलिए नहीं बोलते।
निश्चयनय तो गंभीर है। इसलिए आप ध्यान रखना, समयसार सुनते समय अन्यत्र नहीं भटकना, पूछ लेना। स्याद्वाद शैली से समयसार समझना है आपको । इसलिए पुनः ध्यान दो, समय को समझना है।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org