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समय देशना - हिन्दी
२२० नहीं, जिस नय से कह रहा हूँ उस नय से सुनो। शरीर के परिणमन से तेरा स्वभाव परिणमन नहीं है, चैतन्य के परिणमन से तेरा स्वभाव परिणमन है। ये चाहे बूढ़ा हो, लगड़ा-लूला हो । ये कैसा भी हो, कुब्जक भी हो, हुण्डक भी हो, तब भी संसार में नहीं रूला सकता है। चाहे समचतुस संस्थान वाला हो, पर भाव का कुबड़ा है, तो समचतुरस संस्थान भी मोक्ष नहीं दिला पायेगा। किसी काले को देखकर चेहरा नहीं बिगाड़ना। यह कालापन चर्म का है, धर्म का नहीं है । गुण-पर्याय सबसे ज्यादा क्यों बिगड़ रही हैं ? हे ज्ञानी ! तू किसी माँ का लाल नहीं है क्या? किसी भगनि का भैया नहीं है क्या ? तेरे पुत्र की माँ किसी की भगनि नहीं है क्या? जिसकी वह बहिन है, उससे पूछना कि तू इसमें क्या देखता है। चरण छूता है और कहता है, कि मेरी बहिन हैं । भगनि भाव से क्या परिणामों की विशुद्धि से खड़ा है ? तेरे पत्नि भाव से क्या परिणामों की अशुद्धि लिए खड़ा है ? द्रव्य एक है। काश ! तू पर की पर्याय को नहीं देखता, तू उसमें जीवद्रव्य निहारता तो हे ज्ञानी ! उसमें तुझे भगवान् नजर आते।
___ व्यंजनपर्याय में गुणपर्याय को ले गया, इस कारण जगत में विषम/विजातीय पर्याय में भ्रमण करना पड़ रहा है । गुण-व्यंजन-पर्याय को द्रव्य-व्यंजन-पर्याय में न ले जाता, तो, हे ज्ञानी ! आज तू अशरीरी भगवान्-आत्मा होता । क्योंकि विभाव-व्यंजन-पर्याय है । देव, नारक, मनुष्यादि । विभाव-द्रव्य-व्यंजन पर्याय का आसरा क्यों लिया ? ये सब क्या है? विभावदशा है। यह क्यों है ? द्वैत के कारण । अचेतन है मिश्रधारा, चैतन्य की । हे भगवान् ! तलवार की धार पर चलना कठिन नहीं है, ध्यान दो, अपनी द्रव्यव्यंजन-पर्याय को पर की द्रव्य-व्यंजन-पर्याय से रोकना कठिन है। द्रव्यानुयोग से चरणानुयोग का कथन करूँ। शील का पालन कठिन नहीं है। परन्तु ज्ञानगुण को, चर्म के धर्म में ले जाने से रोकना कठिन है। मनुष्य, घोड़ा कभी बूढ़े नहीं होते, इनके तन बूढ़े होते हैं इनकी वासनायें बूढ़ी नहीं होती हैं। इनको बाजीकरण (गरिष्ठ भोजन) मिलता है। आयुर्वेद की भाषा में बोल रहा हूँ।
हे मुमुक्षु ! साधना के लिए ज्ञान ही चाहिए। साधना के लिए ज्ञान ही को वश में करना पड़ता है। जिसका ज्ञान वश में है, उसकी इन्द्रियाँ वश में होती हैं। जिसका ज्ञान वश में नहीं है, उसकी इन्द्रियाँ वश में नहीं है, उसका कुछ भी वश में नहीं है। लोगों ने बिजली के बटन चटकाना (बंद करना) सीख लिया, मुख्य बटन (मेन स्विच) पर ध्यान नहीं है। मेन स्विच बन्द कर दो, बिजली के बटन चटकाने की जरूरत नहीं है। ज्ञानी ! गइराई में पहुँच नहीं रहा है। जगत् के जीव कोई कान को वश में करना चाहते हैं, कोई नाक को वश में करने में लगे है, कोई आँख को । अरे मुमुक्षु ! ज्ञान को ज्ञान से वश में कर लीजिए । पाँच बल्ब जो जल रहे हैं, उन पाँचों बल्बों में करेंट एक है। हे ज्ञानी । पाँचों ही इन्द्रियों में ज्ञानधाराएँ जाती हैं । ज्ञानधारा को वश में नहीं करना। एक-सौ-बीस वर्ष के क्षुल्लक जी भिण्ड में विराजे हैं, जो अपनी क्रियाएँ स्वयं करते हैं। तन काम तभी देता है, जब ज्ञान स्थिर हो जाता है । जिसका ज्ञान चला जाता है, उसका तन जल्दी चला जाता है। आज जैनदर्शन में दुनियाँ के शब्द आ गये हैं, जैनदर्शन तो बहुत ऊँचा है। आप कहते है कि भगवन् ! जल्दी ठीक हो जायें । यह मिथ्यात्व है। सास परेशान कर रही है। मिथ्यादृष्टि । यह सम्यकदृष्टि की भाषा है क्या ? सम्यग्दृष्टि 'कारण-कार्य विधान' जानता है । बहू क्या परेशान करेगी, सासू क्या परेशान करेगी? । मेरे पूर्व का कर्म है । सासू द्वारा दिया गया कष्ट कार्य है, कारण तो पूर्व का कर्म है।
मेरे अन्दर हृदय में एक बात गूंजती है कारण-कार्य विधानं' ये जगत के बच्चों से लेकर बड़ों तक के हृदय में यह बैठ जाये, तो दुनियाँ के सारे के सारे विसंवाद समाप्त हो जायें।
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