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________________ १८५ समय देशना - हिन्दी तब तक सोने में है, जब तक नरक, निगोद, तिर्यञ्च, स्वर्ग, मनुष्य पर्याय रूप शोभित हो रहा है। सोलह ताप का हो जायेगा तो सिद्धशिला पर विराजमान हो जायेगा। यह परमभाव स्वरूप है वह तो है परमभाव रूप और सोलहताप 'स्वरूप' है और मध्यमभाव 'नाना' रूप है। अशुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्यायभूत है नर - नरकादि चौरासी लाख योनियाँ । T ज्ञायकभाव, परमभाव, शुद्धस्वरूप चिद्रूप है । अपन को विद्यार्थी बनना है, जब तक केवली न बन जायें। और एक-एक समय के स्वयं के परिणामों पढ़िये, और जब आप यहाँ पहली बार आये थे, आ कैसा लगा, उसको पढ़िये। फिर कुछ क्षण बैठे तो कैसा महसूस हुआ, वह पढ़िये । फिर चिद्रूप की बात प्रारंभ हुई तो कैसा लगा वह पढ़िये । मैं मंदिर जाता हूँ तब भी पढ़ाई करता हूँ। एक व्यक्ति सामायिक करता है उसको पढ़ता हूँ। आप पूजन करते हो तब भी पढ़ता हूँ । चन्दन घिसते हो आप, तब भी पढ़ता हूँ । आप भी पढ़ो, क्योंकि योग बदलेगा तो उपयोग भी बदलेगा। योगी भी बदल रहा है। बदलता है न ? अभी सिद्धचक्रविधान चल रहा है, उसमें संगीत चलता आपके पैर थिरकते हैं। जब शांतिधारा होती है तो आँखे स्थिर होती है । जब तत्त्व उपदेश होता है, तब इनका हृदय थिरकता है और परिणति स्थिर होती है। क्यों क्या है ? हर वस्तु का आनंद होता है। आप श्रीजी की पूजन के लिए चंदन घिसते हो न, उसमें भी आनंद होता है । यदि आनंद नहीं होता, तो आपका हाथ नहीं चल सकता था। एक ललक है, कि अपने हाथ से द्रव्य ता हूँ, श्रीजी का अभिषेक - पूजन करूँगा । वह भी एक आनंद है । उसमें कोई छेड़ दे, तो गुस्सा आने लगता है। फिर भी वह थाली लगाकर चल दे। मन कहाँ था? प्रभु पास जा रहा हूँ। जैसे विद्युतधारा प्रवाहित है, बल्ब भी जल रहा है, इतने में कोई अपना अलग से तार लेकर आया, और तार में अपना तार डालने लगा, तो चिनगारी उत्पन्न होगी। हे ज्ञानी ! ध्यान दो, मैं क्या समझा रहा हूँ। कोई पूजन को जा रहा है, कोई दान देने जा रहा है, सामायिक करने जा रहा है, तो उसे छेड़ना नहीं, उसे जाने देना । नहीं तो तुमने स्पर्श किया तो चिंगारी निकलेगी, और यदि संपर्क हो गया, तो पूरी लाइट गई। मंदिर में पूजा कोई कर रहा था, बार-बार टोका, तो वह पूजा छोड़कर कषाय की पूजा करने लगा, परिवर्तित कर दी। अपने बेटों को समझाना, परन्तु मर्यादा में। आपकी मर्यादा भंग न होने पाये, इतना समझाना। बेटा बीड़ी पीते दिख जाये, वह छुप रहा था, तो देखने मत जाना, नहीं तो अभी वह आपकी मर्यादा रख रहा था, अगर आप देखने पहुँच गये, तो उसकी मर्यादा समाप्त हो जायेगी, अब वह तुम्हारे सामने ही पियेगा । उसे तुम स्वयं मत समझाना कि तुम क्यों पीते हो ? उसके मित्रों के माध्यम से समझवाना, उसकी माँ से बोलना, उसकी पत्नी से बोल देना। यह समयसार नहीं है, यह बहुत बड़ा नीति ग्रंथ है, भीतर की नीतियों से भरा है। तो कहाँ पहुँच गये? शुद्ध सोने से आभूषण नहीं बनते। शुद्ध सोना तो डली है, फिर भी आभूषण में सोना तो है। आज कल भ्रम क्या खड़ा किया जाता है कि 'प्रवचनसार' जी में चरणानुयोग चूलिका में लिखा है कि अब वर्तमान में शुद्ध सोना नहीं है, डली का सोना नहीं है। जैसी महावीर की चर्या थी, वैसी वर्तमान की चर्या नहीं है, सत्य है । क्यों ? वह उपेक्षा संयम था । वर्तमान में कौन-सा संयम है ? स्थविरकल्प अपहृत संयम | काँटा चुभ जाये, स्वतः निकले तो ठीक है, नहीं तो निकालना नहीं। ये उपेक्षा (जिनकल्प) संयम की चर्या है। साँप शरीर पर आ जाये, स्वयं चला जाये तो ठीक है, नहीं तो बैठे हैं। उपेक्षा संयम है। शुद्ध डली का सोना नहीं है, पर यह बताओ कि कुण्डल में शुद्ध सोना है, या नहीं है ? कुण्डल सोने For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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