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________________ समय देशना - हिन्दी कहाँ लिया ? क्या बदला? मोह नहीं बदला, मोह का विषय बदल लिया है। तूने राग नहीं बदला, राग का विषय बदला है । इस लेखनी से हिसाब कर रहा था, दुकान का गणित लगा रहा था, तो अब दुकान को बदलकर तू लोक का गणित लगाने लगा । हे ज्ञानी ! समयसार कह रहा है कि इतना तो अन्तर आ गया, दुकान से तो हट गया, लेकिन अभी आत्मलोक से दूर है। कभी तू रमणी को निहार रहा था, पिता को मालूम चल गया कि मेरे बेटे को कन्या निहारने की आदत लग गई, अब इसकी शादी कर दूँ, कहीं बदनाम न हो जाऊँ । तो अपनी इज्जत के पीछे उसकी शादी कर दी । ज्ञानी ! ध्यान तो दो। शादी कर दी है, तो क्या स्त्री तेरी हो गई? वह तो पर ही है । पुनः प्रश्न है कि शादी हो तो गई तेरी, लेकिन ये तो बताओ, जो कुँवारी कन्या को देख रहा था पाप करने के भावों से, उसमें पाप के बन्ध का जो भाव हो रहा था, वह जिसके साथ शादी हो गई है, उसके साथ तू सेवन करेगा तो क्या धर्म से ब्रह्मचर्य हो जायेगा ? अब्रह्म तो दोनों ही हैं। समाज की बात छोड़िये, अब्रह्म की धारा की बात कीजिये । ओ मुमुक्षु ! 'परिणति मोहनाम्नः ।' चाहे तो निज शरीर को निहारे, चाहे पर शरीर को निहारे, लेकिन व्यभिचार दोनों ही हैं । ज्ञानियो ! ये तो दुनियाँ ने कहना सीखा है कि पर के शरीर को निहारना व्यभिचार है, परन्तु यह समयसार ही कह पायेगा, कि स्वयं के पुद्गल शरीर को निहारना भी व्यभिचार ही है। क्या कहा कि ब्रह्म की बात करो, धर्म की बात करो। अच्छा यह तो बताओ कि आपके पास जो ज्ञानी बैठा है, उसका कुर्ता क्या आपका है ? नहीं है न ! तो जो आपका है, उसे ही अपना कहते हो क्या ? जैसे दूसरे का वस्त्र तेरा नहीं है, वैसे ही तेरा वस्त्र भी तेरा नहीं है । I मुमुक्षु ! पर का रागभाव मेरा रागभाव नहीं है, तो तेरा रागभाव भी तेरा रागभाव नहीं है। परपरिणति बहुत दूर है, मैं निज की साधना कर रहा हूँ । निज साधना को निहारते-निहारते साधना में कर क्या रहे थे, ये तो बता दो ? कि मैं तो कर रहा हूँ, परन्तु ये नहीं कर रहा है। ज्ञानी ! तुम दोनों ही साधना नहीं कर रहे थे । क्यों ? बोले- आचार्य श्री ! इन्होंने सामायिक नहीं की, ये पूरी सामायिक में सोया है। तूने कब की ? तूने की होती, तो देख कैसे लिया? ये सो रहा है, इसका मतलब है कि एक ने सोते-सोते नहीं की, दूसरे ने जागते-जागते नहीं की, दोनों ही ने सामायिक नहीं की। क्यों ? ऐसा तो नहीं लग रहा कि हमारा व्यवहारधर्म समाप्त हो जायेगा ? भैय्या ! हमने पहले ही कह दिया था घर के व्यवहार को अब आप घर में संभाल लो । तो सामायिक किसकी हुई ? दोनों की नहीं हुई। ध्यान दो, धर्म गंभीर है। एक दर्शनावरणी में चला गया, एक दर्शन में चला गया, पर सामायिक दोनों ही नहीं कर पाये । मतलब यह कि एक सोने में गया, दूसरा देखने में गया, पर देख दोनों ही नहीं पा रहे थे जिसके देखने लिए बैठे थे । 'परपरिणति मोहो, पर की परिणति का हेतु तो मोह है। कैसा है वह मोह ? ईंधन डालो तो अग्नि जले, पर आश्चर्य तो देखो कि अग्नि तो ईंधन की सत्ता होने पर जलती है, पर ये मोहाग्नि ईंधन न होने पर भी जलती है। मोह-अग्नि उत्कृष्ट है। बेटे का उदर में आना ही नहीं हुआ, पर माँ सोच रही थी कि संतान होगी, तो ऐसा करेंगे। अभी तो ईंधन आया ही नहीं था, और जलना शुरू हो गया। ज्ञ ! सम्बन्धी की मृत्यु हो गई। लकड़ी तो समाप्त हो चुकी थी, फिर भी जल क्यों रही है ? वह चला गया, फिर भी तुम रो क्यों रहे हो ? चूल्हे में अग्नि ईंधन होने पर ही जलती है, पर मोह की अग्नि तो होने व न होने दोनों में जलती है, इसलिए मोह अग्नि उत्कृष्ट है। न लेना, न देना, फिर भी रोना । कुछ नहीं, ये पागलपन है । वस्तु के तत्त्व का निर्णय नहीं ले पा रहा है, इसलिए रो रहा है। ऐसे भी लोग यहाँ विराजते हैं, जिनको यथार्थ में किसी का लेना-देना नहीं है, फिर भी रो रहे हैं। मैं आपके नगर में राज्य करने नहीं आऊँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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