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समय देशना - हिन्दी
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कल्याण तुम्हारा कैसे हो'। ज्ञान हम बढ़ा लेते हैं, जो क्षयोपशम का विषय है। जब आचारांग सूत्र कहता है कि जिसके पास अन्तिम विषय आ गया है तो पहले दो तो नियम से होंगे । चारित्र अन्तदीप है। सम्यक्चारित्र को ग्रहण करना । जहाँ सम्यक्चारित्र शब्द आ जाता है, वहाँ दो अपने आप मिलते हैं । जैसे दीपावली का पर्व आ रहा है तो बाजार में एक साथ दो मुफ्त में मिल रहे हैं। इसी प्रकार आप सम्यक्चारित्र को प्राप्त करो, दो मुफ्त है। यदि किसी जीव ने द्रव्यसंयम को प्राप्त कर लिया, फिर सम्यक् प्राप्त करता है, तो युगपत् तीनों ही होते हैं। पर पहले होना चाहिए द्रव्यसंयम । संज्ञी पंचेन्द्रिय, पर्याप्तक, कर्मभूमियाँ, इतना द्रव्य तुम्हारे पास है जो आवश्यक है। सम्यक्दर्शन - ज्ञान - चारित्र के लिए इतना आवश्यक है, जो आपके पास है। अब यही है कि भावना बने या न बने। मन तो होता है, भाव नहीं होते ।
मन में व भाव में अंतर है। सिद्धांतों में जो किंचित किंचित विकल्प हैं न, ये भावना और भाव में अंतर डालते हैं। ये जगत् के जीव भावना को ही भावसंयम मान रहे हैं। यह पहला मिथ्यात्व छोड़ दो आज से । भावना को भावसंयम कहना मिथ्यात्व है । " इष्टोपदेश भाष्य" में इसका स्पष्टीकरण किया है । भावनासंयम श्रावक के भी होता है और होना ही चाहिए। यदि वह नहीं है, तो सम्यक्दृष्टि भी नहीं है । यदि सम्यग्दृष्टि जीव को चौबीस घंटे में एक बार भी विषयों से हटने के परिणाम न आते हों, तो वह सम्यग्दृष्टि कैसा ? जल बिन मीन, ऐसा होना चाहिए, तड़पना चाहिए उसको, जैसे पानी के बिना मछली तड़पती है, सम्यग्दर्शन शुद्धः संसार - शरीर - भोग - निर्विण्णः |
मैं आपको जप, तप का निषेध नहीं करता। बार-बार करो । परन्तु उन क्रियाओं के करते समय ध्यान रखना कि संसार, शरीर, भोग से भिन्न मानना है । तप, जप चल रहा था ऐसे कि मन में चल रहा था कि दुकान चले। आप वैसे ही कर रहे थे, जैसे नारायण चक्रवर्ती करता है। नारायण चक्रवर्ती नियम से उपवास करता है। कब करता है? जब कोटिशिला उठाता है। नारायण तब आठ उपवास करता है। विद्या देवता की आराधना करता है । चक्रवर्ती कपाट खोलता है, तो उपवास करता है । यह राजेश्वरी उपवास है । रावण ने कितनी साधना की थी, उपवास किये। भावसंयम 'भावना' नहीं है, भावसंयम भावसहित होता है । परन्तु भावना मात्र में भावसंयम नहीं होता । सम्यग्दृष्टि वही है जो संसार, शरीर, भोग से विरक्त होता है, और अपनी शक्ति से भी विरक्त होता है।
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" सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं ज्ञान वैराग्य शक्ति: "
ज्ञान, वैराग्य शक्ति का प्रयोग नहीं कर रहे हो, तो अभी सम्यक्त्व विचारणीय है । और जगत्प्रसिद्ध उदाहरण समझिये । आप सब्जी लेने गये। एक दूसरे से कहता है कि लौकी खरीदना है। वह भाजी लेना चाहता था, पर सोचता है कि लौकी ले लूँगा तो उसमें पानी भी पड़ जायेगा, और घर में सभी को हो जायेगी । दूसरा कहता है कि भाजी खरीदूँगा, तो कम आयेगी, अत: लौकी खरीद लूँ। दूसरा कहता है कि भाजी नहीं खरीदना, लौकी खरीदना है । क्यों ? पहला कहता है, क्योंकि लौकी को आने में एक जीव को कष्ट हुआ है और भाजी उगने में अनंत जीव को कष्ट होता है, इसलिए लौकी खरीदना है। देखो, दोनों ने लौकी खरीदी, पर दोनों के भाव में अंतर है । एक ने भाजी नहीं खरीदी, लौकी खरीदी, क्योंकि जीवों की हिंसा भाजी में अधिक है। उसकी ज्ञान शक्ति ने मना किया, और वैराग्यशक्ति ने खरीदने नहीं दिया। ऐसी ज्ञानशक्ति और वैराग्यशक्ति को हर जगह प्रयोग करना है । वैद्य ने कहा था कि रात्रिभोजन नहीं करना, अन्यथा बीमार पड़
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