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________________ इतना समय देशना - हिन्दी १५८ किसने ? प्रमाता ने । क्या जाना ? प्रमिति, प्रमाण का फल । अब मैं नहीं जानना चाहता अन्य को, नहीं जानना चाहता अन्य से, नहीं जानना चाहता हूँ अन्य, मैं नहीं जानना चाहता हूँ अन्यों के लिए । मैं जानना चाहता हूँ निज को, निज के लिए, निज से ही, अपादान से, परभावों से भिन्न स्वभाव को । आत्मा का स्वभाव परभावों से भिन्न है । मैं जानना चाहता हूँ निज में ही। मैं ही लक्ष्य हूँ, मैं ही लक्षण हूँ, मैं ही प्रमाता हूँ, मैं ही प्रमिति हूँ, मैं ही प्रमाण हूँ। हे योगी ! जगत् को जानने के स्थान अनंत थे। 'समयसार' का सार है ये गाथा। यत्र-तत्र देखोगे और सुई में धागा डालोगे? हे तत्त्वप्रेमी ज्ञानी जीव ! सुई में धागा डालने के लिये, उपयोग को एकाग्र करना होता है, स्थिर करना होता है। हे मुनीश्वर ! निज के चैतन्य में चिदशक्ति का धागा पिरोना है, तो अपने आत्मभाव में नित्य ही उपयुक्त हो जाओ। ___ खोट मिलाकर आभूषण बनाये जा सकते हैं, पहने जा सकते हैं, पर खोट के आभूषण लाखों में बेचे नहीं जा सकते हैं। भटकना नहीं, नहीं तो सुनार की दुकान पर जाकर बेच कर देख लेना, तुरन्त बता देगा कि इतनी खोट है. इसके पैसे नहीं। सनार शद्ध के ही दाम देगा। जो 'चलेगा' शब्द चल रहा है, वह शिथिलाचार अधिक-से-अधिक स्वर्ग तक ही ले जा पायेगा, सिद्धालय में नहीं ले जा पायेगा। शिथिलाचार तो स्वयं के प्रमाद के कारण स्वयमेव आता है। इसे लाना क्यों ? जो लिखा है, उतना ही तत्त्व नहीं है। लिखा तो सूत्र है, और बाकी विस्तार है। गुलाब का पुष्प कितना बड़ा होता है ? गुलाब का फूल इतना-सा है, पुष्प का संघात है, पर उसकी सुगंध इतनी नहीं है। जब खिलता है, तो कितने प्रदेशों को महका देता है ? सुगंध के परमाणु विस्तीर्ण थे । पुष्प को नहीं, पराग को नहीं, सुभाषित को देखो । सूत्र में संघात है, वह संघात विस्तीर्ण होता है तो कितना होता है ? आचार्य विद्यानंद स्वामी 'अष्टसहस्री' में लिख रहे हैं, पुष्प कितना है? कली कितनी है? सुगंध कितनी है ? धूप हाथ में लिये कितनी सी है? अग्नि में डालो तो चारों तरफ सुगंध फैलती है । यही कारण है कि संघात में आत्मा मति श्रुतज्ञान में विराजती है । यही ज्ञानशक्ति"सम्यग्दृष्टिर्भवति नियतं ज्ञान वैराग्यशक्तिः" वही ज्ञानशक्ति जब वैराग्यशक्ति से समन्वित होती है, तब चारित्ररूप परिणत होती है। जब चारित्र रूप परिणत होती है, तो कैवल्य को प्रगट करती है। जो संघात में थी, वह विश्वज्ञाता बन गई। किसमें थी ? अल्प में। विश्व झलक रहा है कि नहीं? झलक रहा है, इतना विशाल हो गया कि नहीं? और जगत का जितना वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम था, वह क्षय हो गया। और तीर्थंकर केवली जैसा वरिष्ठ कोई होता नहीं। केवल ज्ञान पहले प्रगट होता है कि अन्तराय कर्म का क्षय पहले होता है ? केवल ज्ञान हो जाता है, तो अन्तराय कर्म के क्षय की क्या आवश्यकता थी? जब तक अनंतशक्ति नहीं होगी. तब तक अनंतज्ञान रह नहीं सकता। अनंतज्ञान रखने के लिए अनंतबल चाहिए । शक्तिरूप में रखा रहने से कुछ नहीं होता। उसके लिए दृष्टांत लाइये । धमाका (बम) बंद है तो कुछ नहीं कराता, पर फूट जाये तो भवन गिरा देगा। यह संघातशक्ति है। संघात में गुप्त है, विस्तीर्ण में फैल गया। धमाका (बम) ने क्या किया ? विस्फोट किया। स्फुटित हो गया, जब धमाका स्फुटित होता है तो कितनी आवाज करता है, कितना विनाश करता है। जब भेदविज्ञान की शक्ति से आत्मभावना से युक्त योगीश्वर के कर्मों का विस्फोट होता है, तब अपने ज्ञानतत्त्व के कर्म , प्रदेश विस्तीर्ण होते हैं, लोक में व्याप्त होते हैं, जैसे धमाकों में कितने काम होते हैं। कंकण अलग होते हैं, कागज अलग फिकते हैं, प्रकाश, आवाज अलग-अलग होती है और हृदय अलग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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