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समय देशना - हिन्दी
१३६ अनुभूति न करने वाला अनुभव कर सकता है। कहनेवाला अनुभव शून्य भी हो सकता है। किसी को मिठाई खिलाई है, वह कह नहीं पाता, परन्तु अनुभव है। और एक व्यक्ति ने मिठाई को खाया नहीं है, तब उसकी मिठास शाब्दिक तो हो सकती है, पर मिठाई का अनुभव नहीं होता है। तत्त्वबोध शाब्दिक नहीं, अनुभवगम्य है। मैं ही अनुभावित हूँ। जो ध्रुव शुद्धात्मा का अनुभव परिणाम है, वह मेरे में ही है, अनुभावक में ही हूँ। मैं ही वह व्यक्ति हूँ जो सेवन कर रहा हूँ। मैं ही वह द्रव्य हूँ, जो अनुभव योग्य है । मैं ही वह पुरुष हूँ, जो अनुभवकर्ता है ।जो भिन्न में अभिन्न का वेदन है, वह समयसार नहीं है। जो अभिन्न में अभिन्न का अनुभवपना है, वह समयसार है।
सत्यार्थदृष्टि, भूतार्थदृष्टि का व्याख्यान आज कर रहे है | ग्यारहवीं गाथा में सम्यग्दृष्टि आत्मा, सत्यार्थदृष्टि आत्मा, समीचीन-दृष्टि आत्मा, वह कौन-सी आत्मा है, इस बात को यहाँ कह रहे हैं। सम्हल कर सुनना है, क्योंकि जो विषय को नहीं जानता, वह अपने आप में भ्रमित हो सकता है । यहाँ आचार्य कुन्दकुन्द देव निश्चय को ही भूतार्थ कहना चाहते हैं। विभाव अभूतार्थ है। जो उस निश्चय भूतार्थ को स्वीकारता है, वह सम्यग्दृष्टि है। आप भी सभी के मन के विषय को समझना । क्योंकि जिसका अनादि से सेवन किया हो, उसका उस पर राग होता है। जरा-भी निश्चय की प्रधानता से कथन हुआ तो जीव घबड़ाने लगता है, कि व्यवहार का लोप हो जायेगा । लोप किसी का होता ही नहीं है। विभाव है, था, रहेगा। लेकिन सत्यार्थ नहीं है। एक जीव की अपेक्षा कथन नहीं किया, सामान्य अपेक्षा कथन है। मिथ्यात्व है, था, रहेगा । क्योंकि मिथ्यात्व न होता, तो आप पंचमकाल में न होते। मिथ्यात्व नहीं रहेगा, तो संसार का लोप हो जायेगा। मिथ्यात्व नहीं है, तो आज कुलिंगी कैसे दिख रहे हैं ? जिनलिंग में दीक्षित होने के उपरान्त भी नाना परिणाम बुद्धि में चल रहे हैं। क्या यह सम्यक्त्वपना है, जो अनेक-अनेक अपनी-अपनी आम्नाय बना बैठे हैं ? ये आम्नाय महावीर स्वामी के द्वारा बनाई हुई नहीं है। जितने पंथ आदि भेद चल रहे हैं, वह वर्द्धमान की वाणी में नहीं है। यह विडम्बना है मिथ्यात्व की । वर्द्धमान स्वामी ने तत्त्व प्ररूपणा की है, विपर्यास की प्ररूपणा नहीं की है । विपरीतपना प्ररूपित नहीं किया जाता है, विपरीतपना व्यक्ति स्वयं कर लेता है । आपकी जैन आम्नाय में जितने ग्रुप (गुट) हैं, ये सभी सत्य नहीं हैं; क्योंकि एक का कथन किया, अनेक का नहीं किया। तो मिथ्यात्व का विनाश ही तो सम्यक्त्व है, सम्यक्त्व का अभाव ही मिथ्यात्व है। यदि आपको सम्यग्दृष्टि जीव दिख रहे हैं, तो वे मिथ्यात्व की सूचना दे रहे हैं और जो मिथ्यादृष्टि दिख रहे हैं, वे सम्यक्त्व की सूचना दे रहे हैं।
"अर्पितानर्पितसिद्धेः" त.स. 5 अ.सू. 32 एक को अर्पित, एक को अनर्पित। तो व्यवहार जो है वह अभूतार्थ है, और जो निश्चय है, वह भूतार्थ है। विभाव अभूतार्थ क्यों है ? निश्चय की अपेक्षा से व्यवहार अभूतार्थ है, परन्तु व्यवहार की अपेक्षा से है व्यवहार भूतार्थ है, । व्यवहार में निश्चय को अभेद करा दोगे तो वह निश्चय नहीं, अभूतार्थ हो जायेगा। अहो ज्ञानी ! मिट्टी का घट है, परन्तु घट घी का कहा जाता है । गाथा पढ़कर उसकी भूमिका को समझें। आप व्यवहार चलाने के लिए क्या कह रहे हो,यह आपका विषय है। आप जीवन जीने के लिए क्या बोलते हो, यह आपका विषय है। सत्य क्या है, यह समझिये।
घृतकुम्भाभिघानेऽपि कुम्भो घृतमयो न चेत् ।
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