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________________ समय देशना - हिन्दी १०४ पूरा दल निकाल देने के बाद गुठली को बो दो, पौधा ऊग आयेगा। विश्वास रखना, व्यवहार धर्म पर लोगों की दृष्टि बहुत ज्यादा टिक चुकी है। क्रियाकलाप में उलझ चुका है जीव । ऐसा काल तेरे देश में आया था, जब वैदिक दर्शन में क्रियाकलाप बढ़ गये थे, लोक दासता को प्राप्त हुए। फिर लोगों ने उपनिषदों की रचना की। क्रियाकाण्ड ज्ञान की प्राप्ति के लिए होता है। यदि क्रिया में ही जीव उलझ जाये, तो ज्ञानशून्यता आती है। विश्वास रखना, एक समय जीव थका-थका महसूस करता है । आप मात्र पाँच मिनट ध्यान करना, उसमें शक्ति मिलेगी और दिनभर वंदना करना, उस शक्ति को देखना, यानी भावों की विशुद्धि को देखना, ये अंदर की बात है। किसी को वंदना की मना नहीं करना, अन्यथा ध्यान लगता नहीं, वंदना और छोड़ देगा। ये तत्त्व की बात है । पर ये ध्रुव सत्य है कि जो शक्ति (विशुद्धि) ध्यान में प्रगट होती है, वह वंदना में नहीं होती, क्योंकि वंदना में योग चलायमान होता है और ध्यान में योग स्थिर होता है। स्थिर योगों से कर्मों की निर्जरा अधिक होती है, और चलायमान योग से निर्जरा कम होती है। ऐसा नहीं करना कि सब छोड़ दो। पर यह ग्रंथ इन सबसे परे है। सुना इसलिए रहा हूँ, कि जो आप कर रहे हो उससे आगे भी कोई वस्तु है । सहज वेदन करो ध्यान का । ज्ञान ही इतने शून्य की ओर ले जाता है, फिर ध्यान कैसा होता होगा? जो मैं कह रहा हूँ, वह ध्यान नहीं है, ज्ञान है। ध्यान तो और ऊँची वस्तु है । पर आज अज्ञानता तीव्रता से दौड़ रही है, कि म्यूजिक लगा दिये, संगीत भजन शुरू कर दिये, मोमबत्ती जला दी, और कह रहे हो ध्यान करो। किसका ध्यान कर रहे हो? हँस रहे हो, हँसा रहे हो. ये हास्य-कषाय है । कषाय में ध्यान कहाँ, ध्यान में कषाय कहाँ ? चेहरा ही खुश हो पायेगा, पर चित्त गद्गद् नहीं हो पायेगा। ध्यान चेहरे की मुस्कान नहीं है, ध्यान आत्मा का आह्लाद है । मस्तिष्क और चेहरा हो जाये प्रशांत, अंदर में छूट रही गुदगुदी, समझना यही तत्त्व 'ध्यान' है। भूल आपकी नहीं है, भूल बतानेवालों की है, आप तो कुछ जानना चाहते हो । जब आदमी की जानने की इच्छा होती है, तो वह कहीं-न-कहीं तो जाता है। फिर आप बाद में कहें कि विपर्यास किया है। विपर्यास हमने नहीं किया, आपने कराया है। क्योंकि आपने हमें इतना जकड़कर रखा है, कि बाहर निकलकर देखा, तो कुछ और ही आनंद आया। बंधन में सुख नहीं है, जो खुले में सुख है। खुलापन आना चाहिए। जहाँ बंधन आता है, वहाँ से जीव निकलना चाहता है। अपने को खुला छोड़ दो। शब्दों पर ध्यान दो। इन आध्यात्मिक शब्दों का लोगों ने दुरुपयोग कर दिया। कैसा किया? मैंने कहा कि खुलेपन में सुख है, बंधन में दुःख है, तो लोगों ने क्या किया कि धर्म के समाज के सारे बंधन तोड दिये। स्वच्छन्दी हो गये। जो आत्मा का खलापन था, उसे विषयों में ले लिया। 'समयसार' ग्रंथ को पढ़कर विषयों में चला गया। बंधन में सुख नहीं है, खुलेपन में सुख है, तो आपने शब्दों का क्या दुरुपयोग किया, सभी मर्यादाओं को तोड़ दिया। शब्द के साथ व्यभिचार कर दिया, विचार नहीं किया। खुलेपन में आनंद है, इसका अर्थ क्या था ? मैं मोक्ष की आकांक्षा में नहीं बंधना चाहता हूँ , मैं स्वर्ग की आकांक्षा में नहीं बंधना चाहता हूँ , मैं मनुष्य के चक्रवर्ती आदि के वैभव में नहीं बंधना चाहता हूँ। जितने भी विद्यार्थी यहाँ बैठे हो ध्यान देना जब तक पढाई कर रहे हो. तब तक सर्विस (नौकरी/ बन्धन में नहीं बंधना । यदि आपने विचार कर लिया कि मुझे इतना करना है, तो पढ़ाई की सीमा हो जायेगी। आपका असीमित ज्ञान आनेवाला था, वह सीमित हो गया। निर्ग्रन्थ योगी से कहा गया है कि अब तुम मोक्ष के बंधन से दूर हो जाओ। मुक्त होना चाहते हो, पर मोक्ष की रस्सी से बंध गये हो, तो मुक्त कैसे ? मुक्त होकर ही मुक्ति का आनंद आयेगा। अगर मोक्ष प्राप्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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