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________________ यहाँ प्रस्तुत की गई सूचियों के अलावा अध्येताओं ने अपनी अलग अलग कई और भी सूचियाँ तैयार की हैं जिनमें श्री महादेवन का 'साइन मेंनुअल' तथा श्री पारपोला की 'साइन लिस्ट' विशेष हैं। प्रत्येक अध्येता ने अपने अध्ययन को नई दिशा देने का प्रयास किया है किंतु सभी का आधार वैदिक पृष्ठभूमि होने के कारण विवेचना उपयोगी होकर भी पाठन की दिशा में संतोष जनक उपलब्धि नहीं हो सकी। श्री महादेवन ने उनके 'साइन मेनुअल' के अलावा गहन अध्ययन व्दारा सैंधव संकेतों संबंधी 9 गूढ़ निष्कर्ष निकाले हैं जिन्हें विश्व में 'महादेवन की कानकाडेंस के नाम से जाना जाता है। वे निष्कर्ष इस प्रकार हैंअ.-संपूर्ण सामग्री या तो मुहरें हैं या मुहर की छाप जो धातु,अथवा मृद, पाषाण, हस्तिदंत, भाण्डों पर उकेरित है। ब,-अंकित संदेश संबंधी भ्रम निवारण हेतु मुहर की अंकित सतहों की गणना अति आवश्यक है, यथा, 1, 2, 3, 4, 5 अथवा 6 । स,-अधिकांशतः मुहरों के मध्य में एक प्रमुख पशु अंकित है जो विशेषता दर्शाते एकश्रृंगी 'यूनीकार्न', उन्नत कंधे वाला वृषभ, छोटे सींगों वाला बैल, भैंसा, हाथी, शार्दूल, गेंडा, बकरा, हरिण, मगर, बंदर, मीन, कछुआ, शूकर, सर्प, पक्षी, वृक्ष, स्वस्तिक, चक, मेंढक, पुरुष, स्त्री, अर्ध पशु मानव, कुत्ता, सरीसृप, जियामितिक आकृतिया, घनचिन्ह, अंतहीन गठान, कंघा, लकीरें, वक, बिन्दु, रेतघड़ी आदि हैं। इन पर गौर करके वर्गीकरण करना आवश्यक है। द,- मुहरों पर लेखांकन अधिकतया एक पंक्ति में, तो कभी दो या अधिक पंक्तियों में, कभी कोनों में, तो कभी ऊपर से नीचे और कभी नीचे से ऊपर, कभी बेतरतीब और कभी चित्रात्मक अर्थमय पढ़ा गया है। कभी वही लेखन सामान्य 00है तो कभी 10 प्रतिछवि रूप, कभी सामान्य 10 होते हुए भी कम में 1 विपरीत, कभी युगल अंकन में भिन्नता, *E. TU. UE तो कभी कम भिन्नता *") और कभी अंत संकेताक्षर की भिन्नता दिखलाई देने से अनियमित और स्वतंत्र है । इ,-कभी एक ही संकेताक्षर अनेक रूपान्तरों में दिखलाई देता है यथाः U U या OED या || , || आदि। वत्स, लांगडन, गड और स्मिथ ने इस दिशामें ध्यान ना देते हुए सैंधव लिपि पर कार्य किया है जबकि हंटर ने इन्हे वर्गीकृत किया है। दानी ने संकेतों के रूपान्तरों पर काम किया है। ग,- हंटर ने संकेताक्षरों का रूप आधारित वर्गीकरण किया है यथाः मानवाकृति अथवा मानव अंग । अन्य प्राणी और उनके अंग 8 .2 । लकीरें mom. | | अन्य रेखाकृतियाँ । त्रिकोणाक्षर Ag। वर्गाकृतियाँ ||Qa वक संकेताक्षर ))। गिलासाकृतियाँ १०. । घेरे और वर्तुलाकृतियाँ 0.00 आदि । ह-सीमांकित संकेत यथाः -A.INTA1 कोष्ठकीय संकेत यथाः (OTP) , दर्पणस्थ प्रतिछवि , पुनरावृत्ति Try. hी. बंधनयुक्त A.AM. PARN तथा संशयात्मक संकेत यथाः ..आदि । ल- नए संकेताक्षर, यथाः him. .. आदि किंतु .5 ओम के रूप अनदेखे रह गए। इसी प्रकार . . . 8. ) जैसे सहज संकेताक्षरों को भी नही आंक पाए। डॉ. मधुसूदन मिश्रा, डॉ, एस आर राव, डॉ.राजाराम और झा, डॉ.पुणेकर, ने वेद और ब्राम्ही को आधार बना अलग अलग संकेताक्षरों को स्वर और व्यंजन के अर्थ दिए किंतु संतोषजनक सफलता से वंचित रहे। जो भी पढ़ा गया उसे मात्र 'काल्पनिक उड़ान' कहा गया है। अतः सैंधव लिपि अब भी वैसी ही अबूझ बनी है जैसी वह उसके खोजे जाने के समय थी।डॉ, माधीवनन ने लिपि को तमिल मूल की बतलाने का प्रयास किया है। श्री पोसेल ने संकेतो की मात्र विधिवत नकल ही प्रस्तुत की है। 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004058
Book TitleSaindhav Puralipime Dishabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSneh Rani Jain
PublisherInt Digambar Jain Sanskrutik Parishad
Publication Year2003
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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