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(2) 'येषां विकचार' गाथा बोलते समय दृष्टि सन्मुख अनंत तीर्थंकर भगवान आवे, उनके चरण-कमल में कमलों की पंक्ति है, उनकी अपेक्षा चरणकमल अधिक सुन्दर है फिर भी दोनों ही कमल होने से सदृश है, समान है। इसलिए मानों कमलपुष्पों की पंक्ति बोल रही है कि हमारा समान से योग हुआ है यह अच्छा हुआ है।' ऐसे अनंत प्रभु कल्याण के लिए हों।
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(3) 'कषायतापा' गाथा में दृष्टि सन्मुख देशना दे रहे भगवान आवे। उनके मुंह-मेघ से वाणी स्वरुप बारिस गिर रहा है जिससे श्रोताओं के
कषायस्वरुप ताप शान्त हो जाता है। ऐसी वाणी का विस्तार हमें अनुग्रह करें।
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