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2. आयरिय उवज्झाए सूत्र आयरिय उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे | जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि||1|| सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ||2|| सव्वस्स जीव-रासिस्स, भावओ धम्म-निहिअ-निअ-चित्तो सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ||3||
शब्दार्थ आयरिय - आचार्य पर। समण-संघस्स
- मुनि समुदाय से। उवज्झाए - उपाधयाय पर। भगवओ
- पूज्य। .. सीसे - शिष्य पर।
अंजलिं करिअ
- अंजली करके, साहम्मिए - साधर्मिक पर,
हाथ जोड़कर। समान धर्म वाले पर। सीसे
- सिर पर। कुल - कुल। सव्वं
- सब। -गण। खमावइत्ता
- क्षमा चाहता हूँ। - और। खमामि
- क्षमा करता हूँ। - जो। सव्वस्स
- सब। - मैंने। अहयं पि
- मैं भी। केइ -कोई भी, कुछ। सव्वस्स
- उन सब। कसाया - कषाय किये हों। जीव-रासिस्स
- जीव राशि से। सव्वे - उन सबकी। भावओ
- भाव पूर्वक। तिविहेण - तीन प्रकार से मन, धम्म-निहिय-निअ चित्तो - धर्म में निज चित्त को वचन और काया से।
स्थापन किये हुए। खामेमि - क्षमा मांगता हूँ। सव्वं खमावइत्ता इत्यादि - अर्थ पूर्ववत्। सव्वस्स - सब।
भावार्थ : आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक (समान धर्मवाला) कुल और गण, उनके ऊपर मैंने जो कुछ कषाय किये हों उन सबकी मन, वचन और काया से क्षमा मांगता हूँ।।1।।
____ हाथ जोड़ और मस्तक पर रखकर सब पूज्य मुनिराजों से मैं अपने अपराध की क्षमा चाहता हूँ और मैं भी उनके प्रति क्षमा करता हूँ ||2||
धर्म में चित्त को स्थिर करके सम्पूर्ण जीवों से मैं अपने अपराध की क्षमा चाहता हूं और स्वयं भी उनके अपराध को हृदय से क्षमा करता हूँ ||3||
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