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रक्षा के निमित्त 1. स्त्री के साथ एकान्त सेवन नहीं करना, 2. स्त्री-वर्ग से अति परिचय या सम्पर्क
नहीं रखना, 3. श्रृंगार नहीं करना, 4. स्त्री जाति के रूप-सौंदर्य सम्बन्धी तथा कामवर्द्धक वार्तालाप नहीं करना, 5. स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठना आदि नियमों का भी पालन करता है।
7. सचित त्याग प्रतिमा :- पूर्वोक्त प्रतिमाओं के नियमों का यथावत् पालन करते हुए गृहस्थ साधक इस प्रतिमा के सभी प्रकार की सचित वस्तुओं के आहार
का त्याग कर देता है एवं उष्ण जल तथा अचित आहार का ही सेवन करता है। इसकी अवधि सात मास की है।
8. आरम्भ त्याग प्रतिमा :- इस प्रतिमा में उपासक आठ महीने तक स्वयं आरम्भ करने का त्याग कर देता है। वह इस प्रसंग पर अपने कुटुंबीजनों को बुलाकर एक विशेष समारोह के साथ अपने पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व को ज्येष्ठ पुत्र या अन्य उत्तराधिकारी को संभला देता है और स्वयं निवृत्त होकर अपना सारा समय धर्माराधना में लगाता है। इस भूमिका में रहकर गृहस्थउपासक यद्यपि स्वयं व्यवसाय आदि कार्यों में भाग नहीं लेता है और न स्वयं कोई आरंभ ही करता है, फिर भी वह अपने पुत्रादि को यथावसर व्यावसायिक एवं पारिवारिक-कार्यों में मार्गदर्शन देता रहता है।
9. प्रेष्य त्याग प्रतिमा :- इस प्रतिमा में गृहस्थ उपासक नौ महीने तक आरंभ करने का, दूसरों के द्वारा आरंभ करवाने का त्याग कर देता है। वह नौकर-चाकर आदि के द्वारा भी आरम्भ का कोई काम नहीं करवाता है।
10. उद्दिष्ट भत्तत्याग प्रतिमा :- निवृत्ति के इस चरण में गृहस्थउपासक स्वयं के लिए बने आहारादि का भी परित्याग कर देता है। शिर मुण्डन कर लेता है। वह किसी भी गृहस्थ या कुटुम्बीजन के यहाँ जाकर आहार ग्रहण करता है। इस प्रतिमा को धारण किये हुए गृहस्थ साधक को यदि किसी पारिवारिक बात के पूछे जाने पर उसे इन दो विकल्पों से उत्तर देना चाहिए, मैं इसे जानता हूँ या मैं इसे नहीं जानता हूँ। इसके
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