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________________ होना। स्मृति का स्वरूप जहाँ “वह मनुष्य है", वहाँ प्रत्यभिज्ञान का स्वरूप “यह वही मनुष्य' है। यह वही मनुष्य है इस वाक्य में “यह मनुष्य' इन्द्रिय प्रत्यक्ष है और वही' स्मृति में है। इन दोनों का योग होने पर जो ज्ञान होता है, वह प्रत्यभिज्ञान है। 3. तर्क - व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं। साध्य और साधन के अविनाभाव (एक के बिना दूसरे का न होना) को व्याप्ति कहते हैं। अमुक वस्तु होने पर ही अमुक दूसरी वस्तु का होना या पाया जाना उपलंभ कहलाता है और एक के अभाव किसी दूसरी वस्तु का न होना या न पाया जाना अनुपलंभ कहलाता है। जैसे अग्नि होने पर ही धुएँ का होना और अग्नि के अभाव में धुएँ का न होना। अत: उपलंभ और अनुपलंभ रूप जो व्याप्ति है उससे उत्पन्न होने वाला ज्ञान तर्क हैं। bres 4. अनुमान - साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। साधन को लिंग या चिह्न भी कहा जाता है। चिह्न से चिह्नमान का ज्ञान करना अनुमान है। जैसे सूत धागे आदि को देखकर कपडे का अनुमान करना अनुमान लगाना या धूम से अग्नि को जान लेना अनुमान है। किसी स्थल पर धुआँ उठता हुआ दिखलाई देता है तो ग्रामीण लोग धुएँ को देखकर सहज ही यह अनुमान कर लेते है कि वहाँ पर आग जल रही है। अनुमान के मुख्य दो भेद किये गये हैं - a) स्वार्थानुमान और b) परार्थानुमान। a) स्वार्थानुमान - जो अपने अज्ञान की निवृत्ति करने में समर्थ हो वह स्वार्थानुमान है। b) परार्थानुमान - जो दूसरों को अज्ञान को दूर करने में समर्थ हो वह परार्थानुमान है। दूसरे शब्दों में अनुमान के मानसिक क्रम को स्वार्थानुमान और वाचिक क्रम को परार्थानुमान कहते है। स्वार्थानुमान में व्यक्ति स्वयं धूएँ को देखकर अग्नि का अनुमान कर लेता है। उसे किसी प्रकार के वचनों की सहायता लेनी नहीं पडती पर जब उसी बात का किसी दूसरे को अनुमान करवाना होता है सूत्र धागे आदि को देखकर कपड़े का *****na34va
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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