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________________ भगवान महावीर स्वामी के पाट परम्परा के प्रमुख आचार्य 1. सुधर्मास्वामी - भगवान महावीर स्वामी के पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी थे। इनके माता का नाम भद्दिला और पिता का नाम धम्मिल्ल था। वे चौदह विद्या निधान थे।50 वर्ष की उम्र में वीर परमात्मा के पास दीक्षा अंगीकार की थी, 30 वर्ष पर्यन्त वीर प्रभु के चरण कमलों की सेवा की, भगवन्त के मोक्ष के पश्चात् 12 वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहे और 8 वर्ष केवलज्ञान पर्याय में रहे। इस प्रकार 100 वर्ष की आयुष्य पूर्ण कर जम्बूस्वामी को अपने पट्ट पर स्थापन कर मोक्ष पधार गये। 2. आचार्य जम्बूस्वामी - जम्बूस्वामी भगवान महावीरस्वामी के द्वितीय पट्टधर थे। उनका जन्म वीर निर्वाण 16 में ऋषभदेव सेठ की भार्या धारिणी की कुक्षी से राजगृह नगरी में हुआ। गर्भावस्था में माताजी ने जम्बू वृक्ष देखा था, इससे उनका नाम जम्बूकुमार रखा गया। क्रमश: यौवनावस्था को प्राप्त हुए, सुधर्मास्वामी का उपदेश - सुनकर वैराग्यवान हुए। एक वक्त गणधर सुधर्मास्वामी का उपदेश सुनकर दीक्षा के लिए माता-पिता के पास आज्ञा लेने आ रहे थे, बीच में दरवाजें में प्रवेश करते समय तोप का गोला सामने आया, थोडे हटकर अपने आपको बचा लिया, नहीं तो मृत्यु हो जाती वही से वापिस लौटकर सुधर्मास्वामी के पास ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया, व्रत लेने पर भी माता-पिता के आग्रह से आठ कन्याओं से शादी की। उसी रात्री में आठों ही कन्याओं को उपदेश देकर विरागी बनाया। उस समय 500 चोरों के साथ चोरी करने आए हुए प्रभव चोर ने भी प्रतिबोध पाया। दूसरे दिन जम्बूकुमार दीक्षा के लिए तैयार हुए तब उनकी आठों स्त्रियाँ, उनके माता-पिता तथा जम्बूकुमार के माता-पिता और पांचसौ चोर सहित प्रभव, इस तरह कुल 527 के साथ जंबूकुमार ने दीक्षा ली और अंतिम केवली बने। भगवान महावीरस्वामी के मोक्ष के 64 वर्ष बाद मोक्ष पधारे। YOOOOOK sona2 Pr **
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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