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________________ अक्षय तृतीया भारतीय इतिहास में वैशाख शुक्ल तृतीया का बडा ही महत्व है। भारतीय जनजीवन में यह अक्षय तृतीया किंवा... आखा तीज .... के नाम से पुकारा जाता है। इसका भावनात्मक सम्बन्ध प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से है। प्रभु के एक वर्ष चालिस दिन (400) निर्जल उपवास का पारणा इस दिन हुआ था। इसका इतिहास इस प्रकार है - ___ भगवान ऋषभदेव कर्मयुग को छोड़कर धर्मयुग की ओर जुडे। मुनि जीवन स्वीकार किया। दीक्षा के साथ ही ऋषभदेव के पूर्वार्जित अन्तराय कर्म का उदय आ गया। लोग भिक्षाविधि से अपरिचित थे। प्रभु के प्रति अपार श्रद्धा रखते हुए भी आहार-पानी के लिए किसी ने नहीं कहा। किसी ने हाथी, किसी ने घोड़ा, किसी ने रथ के लिए आग्रह किया। प्रभु को नंगे पैर देखकर किसी ने रत्न जड़ित जूते लाकर पहन लेने का आग्रह किया। किसी ने नंगे सिर देखकर मुकुट धारण करने का आग्रह किया, किन्तु आहार-पानी के लिए कोई भी आग्रह नहीं करता था। तीर्थंकर अनंत शक्तिधारी होते है। उन्हें क्षुधापिपासा की व्यथा नहीं सताती। परमात्मा को निराहार रहते 400 दिन बीत गये पर वे अपनी संयम साधना में निष्कंप थे। घूमते घूमते प्रभु हस्तिनापुर पधारे। हस्तिनापुर के युवराज प्रभु के प्रपौत्र श्रेयांसकुमार ने गत रात्री के स्वप्न में स्वयं को श्यामता से श्यामीभूत मेरूपर्वत को अमृत घडों से धोकर उज्जवल करते हुए देखा। दूसरा स्वप्न सुबुद्धि सेठ ने देखा कि सूर्यबिंब से पतित सहस किरणों को श्रेयांसकुमार ने पुनः सूर्य में स्थापित किया। तीसरा स्वप्न सूर्ययश राजा का था कि अनेक शत्रुओं से धिरे हुए एक राजदूत को श्रेयांस ने विजयी बनाया। राजसभा में इन्हीं स्वप्नों पर चर्चा चल रही थी परन्तु उन स्वप्न का रहस्य सूचक अर्थ कोई समझ नहीं सके। श्रेयांसकुमार अपने महल के झरोखे में बैठकर स्वप्न पर विचार कर रहे थे।
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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