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6. चउक्कसाय सूत्र चउक्कसाय-पडिमल्लल्लरणु, दुज्जय-मयण-बाण-मुसुमूरणु। सरस-पियुंग-वण्णु गय-गामिउ, जयउ पासु भुवणत्तय-सामिउ ||1|| जसु-तणु-कंति-कडप्प सिणिद्धउ, सोहइ फणि-मणि-किरणालिद्धउ | नं नव-जलहर तडिल्लय-लंछिउ, सो जिणु पासु पयच्छउ वंछिउ ||2||
शब्दार्थ चउक्कसाय-पडिमल्लल्लरणु - चार कषाय रूपी शत्रु योद्धाओं का नाश करनेवाले | चउक्कसाय - क्रोध, मान, माया और लोभ - ये चार कषाय | पडिमल्ल - सामने लड़नेवाला योद्धा। उल्लल्लूरणु - नाश करनेवाला। दुज्जय-मयण-बाण-मुसुमुरणु - कठिनाई से जीते जाय ऐसे कामदेव के बाणों को तोड़ देने वाले। दुज्जय - कठिनाई से जीता जाय ऐसा। मयण-बाण - कामदेव के बाण। मुसुमूरणु - तोड़ देनेवाला। सरस-पियंगु-वण्णु - नवीन (ताजा) प्रियङ्गु लता जैसे वर्णवाले | सरस - ताजा, नवीन । पियंगु - एक प्रकार की वनस्पति, प्रियङ्गु | वण्णु - वर्ण, रंग । गय-गामिउ - हाथी के समान गति वाले। जयउ - जय को प्राप्त हों। पासु - पार्श्वनाथ। भुवणत्तय-सामिउ - तीनों भुवन के स्वामी। जसु - जिनके। तणु-कंति-कडप्प - शरीर का तेजोमण्डल। सिणिद्धउ - कोमल, मनोहर। सोहइ - शोभित होता है। फणि-मणि-किरणालिद्धउ - नागमणि के किरणों से युक्त | फणि - नाग | मणि - मस्तक पर स्थित मणि। नं- वस्तुतः। नव-जलहर - नवीन मेघ। नव - नवीन। जलहर - मेघ, बादल | तडिल्लय-लंछिउ - बिजली से युक्त। तडिल्लय - बिजली | लंछिउ - युक्त, सहित। सो- वह, वे। जिणु - जिन । पासु - श्री पार्श्वनाथ।
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