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न करे | न करावे न अनु.करे 6000 6000 6000
शीलाङ्ग-रथ कुल 18000
परिग्रह
मनोयोग | वचनयोग | काययोग 2000 2000 2000 आहार भय मैथुन संज्ञा
सज्ञा संज्ञा 500 500
500 श्रोत्रेन्द्रिय चक्षु घ्राणे निग्रह
निग्रह निग्रह 100 100
संज्ञा
500 रसने निग्रह
स्पर्श
निग्रह
100
100
100
पृथ्वी
वाउ.
वन.
10
दो.इ. | तीन इ. | चतु. इ. | पञ्च इ. | अजीव 10 10 10 10 10 संयम
| शौच । अकिञ्चनत्व | ब्रह्मचर्य 6 7 8 9 10
मार्दव
आर्जव
सत्य
शीलाङ्ग - रथ यतिधर्म दस प्रकार का है :- (1) क्षमा, (2) मार्दव, (3) आर्जव, (4) मुक्ति, (5) तप, (6) संयम, (7) सत्य, (8) शौच, (9) अकिञ्चनन्य और (10) ब्रह्मचर्य इसलिये सबसे नीचे के कोष्ठक में यह बतलाया है। यति को (1) पृथ्वीकाय-समारम्भ, (2) अप्काय-समारम्भ, (3) तेजस्काय-समारम्भ, (4) वायुकाय-समारम्भ, (5) वनस्पतिकाय-समारम्भ, (6) द्वीन्द्रियसमारम्भ, (7) त्रीन्द्रिय-समारम्भ, (8) चतुरिन्द्रिय-समारम्भ, (9) पञ्चेन्द्रिय-समारम्भ और (10) अजीव-समारम्भ की जयणा करने की है, अत: दूसरे कोष्ठक में यह बतलया है। यह यतिधर्मयुक्त जयणा पाँच इन्द्रिय जयपूर्वक ली जाती है, इसलिये तीसरे कोष्ठक में पाँच इन्द्रियों के नाम दिखाये हैं। अर्थात् शील के कुल भेद 500 हुए।
इस भेद को आहार, भय, मैथुन और परिग्रह - इन चार संज्ञाओं से, मनोयोग, वचनयोग और काययोग - इन तीन योगों से करना नहीं, कराना नहीं और करते हुए का अनुमोदन करना नहीं, इन तीन कारण से गुणन करने पर अठारह हजार शीलाङ्ग होते हैं। 10x10x5x4x3x3 = 1800
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