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________________ वंदितु (श्रावक का प्रतिक्रमण) सूत्र आचार्य अरिहत साधु उपाध्याय वदितु वंदित्तु सव्वसिद्धे, धम्मायरिए अ सव्व-साहू | बंदितु सबसिदेसिन इच्छामि पडिक्कमिउं, सावग-धम्माइआरस्स ||1|| शब्दार्थ वंदित्तु - वन्दन करके। अ - और। सव्वसिद्धे - सब सिद्ध भगवन्तो को। इच्छामि - मैं चाहता हूँ। धम्मायरिय - धर्माचार्यों को। पडिक्कमिउं - अ- और। प्रतिक्रमण करने को। सव्व-साहू - सब साधुओं को। सावग-धम्माइआरस्स श्रावकधर्म में लगे हुए अतिचारों का। भावार्थ : सब सिद्ध भगवंतों को, धर्माचार्यों को तथा सब साधुओं को वंदन करके-श्रावक धर्म में लगे हुए अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ ||1|| जो मे वयाइयारो, नाणे तह दंसणे चरित्ते । सुहुमो व बायरो वा तं निंदे तं च गरिहामि ||2|| शब्दार्थ जो - जो। व - अथवा। मे - मुझे। बायरो - शीघ्रध्यान में जोमेश्याइयारी वयाइआरो-व्रतों के विषय में आये ऐसा। बड़ा - अतिचार लगा हो। बादर। नाणे - ज्ञान के विषय में। वा - अथवा। तह - तथा। तं - उसकी। दंसणे - दर्शन के विषय में। निंदे - निंदा करता हूँ चरित्ते - चारित्र के विषय में। आत्मा की साक्षी से अ - और (तप)। बुरा मानता हूँ। सुहुमो-सूक्ष्म - शीघ्र ध्यान में तं - उसकी। न आवे ऐसा छोटा। च - और गरिहामि - गुरु की साक्षी में प्रकट करता हूँ, गर्दा करता हूँ। भावार्थ : मुझे व्रतों के विषय में और ज्ञान, दर्शन और चरित्र तथा तप की आराधना के विषय में छोटा अथवा बड़ा जो अतिचार लगा हो, उसकी मैं अपनी आत्मा की साक्षी से निन्दा करता हूँ एवं गुरु की साक्षी में गर्दा करता हूँ।।2।। ज्ञान चारित्र दर्शन TOPICS & 73 te Dowanelbamyom
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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