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________________ दि. 11.9.2012 चिकपेट, बेंगलोर सुकृत अनुमोदनम् अर्ह बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि आदिनाथ जैन ट्रस्ट, चूलै, चैन्नई द्वारा जैन धर्म दर्शन (भाग-5) की पाठ्य पुस्तक प्रकाशित हो कर सुधी अभ्यासु जनों के कर कमलों में उनकी सम्यग् ज्ञान की पिपासा को तृप्त करने आ रही है। अपनी श्रृंखला में यह और एक यश कलगी इस पुस्तक के अवलोकन के बाद डॉ. निर्मलाजी की मेहनत से प्रभावित हुआ हूँ। इतने अल्प समय में इतनी प्रवृत्तियों के बीच भी इन्होंने जो यह सर्जन किया है वह प्रशंसनीय है। जैन दर्शन की ज्ञान विरासत तो अथाह, अतुलनीय सागर के समान है और उसकी यथार्थ गहराई में तो योग्य गुरुगम से ही प्रवेश किया जा सकता है। फिर भी यह पाठ्यक्रम उस श्रुत सागर में प्रवेश हेतु एक अच्छी आधारशिला का कार्य कर सकता है। विद्यार्थियों एवं जिज्ञासुओं के लिए यह एक समयोचित व आकर्षक प्रस्तुति है, यह तो इस पाठ्यक्रम की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता से ही अंदाजा आ जाता है। विश्वास है कि इसका छट्ठा भाग भी शीघ्र प्रकाशित होगा और आशा है कि इस समग्र पाठ्यक्रम की अगली आवृत्ति और गहराई एवं प्रासंगिकता के साथ और आधुनिक व प्रभावी प्रस्तुति शैली को ले कर आएगी। जिन शासन की सेवा के इस महत्व के कार्य को सफलता की इस मंजिल तक पहँचाने के लिए समस्त टीम को मैं खूब-खूब साधुवाद देता हूँ व आशीर्वाद देता हूँ। __- पं. अजयसागर sondll. Po www.dainibrary.org
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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