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________________ प्रस्तुत करते है और श्रमण भगवान महावीर स्वामी उन सब का समाधान करते हैं इनके अतिरिक्त औरों के भी अनेक प्रश्नोत्तर है। इस कारण प्रस्तुत आगम में सभी प्रकार का ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है। दर्शन संबंधी, आचार संबंधी, लोक-पर-लोक आदि का शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिसकी इसमें चर्चा न हुई हो । विविध विषयों का विवेचन होने के कारण इसे जैन ज्ञान का विश्वकोश (Encyclopeadia)कहा जा सकता है। नमस्कार महामंत्र प्रथम बार इसी आगम में लिपिबद्ध मिलता है। इस आगम के प्रति जनमानस में अत्यधिक श्रद्धा रही है जिसके फलस्वरूप व्याख्याप्रज्ञप्ति के पूर्व भगवती यह विशेषण प्रयुक्त होने लगा और वर्षों से तो भगवती यह विशेषण न रहकर स्वतंत्र नाम हो गया है। 6. ज्ञाताधर्मकथा यह छठा अंग है। उदाहरण के द्वारा धर्म का कथन किये जाने से इस आगम का नाम ज्ञाताधर्मकथा है। इसके दो श्रुतस्कंध है, प्रथम श्रुतस्कंध में 19 अध्ययन है तथा उनमें एक-एक कथा है और अंत में उस कथा या दृष्टांत से मिलने वाली शिक्षा बतलाई गई है। उन्नीस अध्ययनों की कथाएं क्रमश इस प्रकार है - 1. प्रथम अध्ययन में श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार का वर्णन है। 2. दूसरे अध्ययन में धन्ना सार्थवाह और विजय चोर का उदाहरण है। 3. तीसरे अध्ययन में शुद्ध सम्यक्त्व के लिए अण्डे का दृष्टान्त है। 4. चौथे अध्ययन में इन्द्रियों को वश में रखने के लिए दो कछुओं का उदाहरण है। 5. पांचवे अध्ययन में थावच्चा पुत्र का वर्णन है। 6. छठे अध्ययन में आत्मा का गुरुत्व और लघुत्व दिखाने के लिए तुंबे का दृष्टांत है। 7. सातवें अध्ययन में आराधक, विराधक के लाभा-लाभ बताने के लिए रोहिणी की कथा है। 8. आठवें अध्ययन में मल्लीनाथ भगवान की कथा का वर्णन है। 9. नवमें अध्ययन में कामभोगों की आसक्ति और विरक्ति के लिए जिनपालित और जिनरक्षित का दृष्टांत है। 10. दसवें अध्ययन में प्रमादी और अप्रमादी के लिए चांद का दृष्टांत है। 11. ग्यारहवें अध्ययन में आराधना और विराधना के लिए वृक्ष का दृष्टांत है। 12. बारहवें अध्ययन में सद्गुरु की सेवा के लिए जल शुद्धि का दृष्टांत है। 13. तेरहवें अध्ययन में सद्गुरु (सत्संग) के अभाव में गुणों की हानि बताने के लिए नंदन मणियार का दृष्टांत 14. चौदहवें अध्ययन में धर्मप्राप्ति के लिए तेतलीपुत्र का दृष्टांत है। OreoveAR ATORS
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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