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6. तीर्थंकर नाम कर्म :- जिस नाम के उदय से तीर्थंकर पद की प्राप्ति होती है, चतुर्विध संघ (तीर्थ) की स्थापना करते है, उसे तीर्थंकर नाम कर्म कहते हैं।
7. निर्माण नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से शरीर में अंग
और उपांग अपनी अपनी जगह व्यवस्थित होते हैं उसे निर्माण नाम कर्म कहते हैं। 8. उपघात नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय जीव अपने शरीर के अधिक अवयव जैसे पडजीभ, डबल दांत, लबिंका अर्थात् छठी अंगुली आदि से दुखी होता है, दोष युक्त शरीर प्राप्त करता है उसे उपघात नाम कर्म कहते है।
* त्रस दशक में दस प्रकृतियाँ होती है ये निम्न है 1. बस नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव स्वेच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है, गमनागमन कर सकता है, उसे त्रस नाम कर्म कहते हैं। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवो को इस नाम कर्म का उदय रहता है। 2. बादर नाम कर्म :- जिस नाम कर्म से जीव को स्थूल (बादर) शरीर की प्राप्ति होती है, उसे बादर नाम कर्म कहते हैं। वह जीव, जिसका एक शरीर अथवा अनेक जीवों के अनेक शरीर इकट्ठे होने पर आँख अथवा यंत्र की सहायता से देखे जा सकते है, उन्हें बादर कहते हैं। 3. पर्याप्त नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ अवश्यमेव पूर्ण करता है, उसे पर्याप्त नाम कर्म कहते हैं। पर्याप्तियाँ छह प्रकार की है, 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोश्वास, 5. भाषा और 6. मन:पर्याप्ति इसका विवेचन पर्याप्ता प्रथम भाग में जीव
(स) चतुरिन्द्रिय तत्व में हो चुका है। 4. प्रत्येक शरीर नाम कर्म :- इस कर्म के ) पवेन्द्रिय उदय से प्रत्येक जीव को अपना स्वतंत्र शरीर प्राप्त होता है। साधारण । वनस्पतिकाय के अतिरिक्त सभी
जीव की पक्षियों
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ELRO EARLSजीवों को प्रत्येक नाम कर्म का
का
ही उदय रहता हैं।
5. स्थिर नाम कर्म :- जिस नाम कर्म के उदय से शरीर में स्थित दांत, नाक हड्डि आदि अपने स्थान पर स्थिर रहते हैं, गिरते या खिसकते नहीं है, उसे स्थिर नाम कर्म कहते हैं।
सब्जी
फल
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