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भाव कायोत्सर्ग
1. द्रव्य कायोत्सर्ग में शारीरिक चंचलता और ममता का त्याग कर जिनमुद्रा आदि में स्थिर होना, कायचेष्टा का निरोध करना। इसमें बाह्य वस्तुओं का भी परित्याग किया जाता है, जैसे उपधि का त्याग करना और खाने-पीने का त्याग करना आदि।
2. भाव कायोत्सर्ग ध्यान है। इसमें साधक धर्मध्यान और शुक्लध्यान में रमण करता है। मन को पवित्र विचार और संकल्प से बांधता है जिससे वह किसी भी प्रकार की शारीरिक वेदना में जुड़ता नहीं हैं वह तन में रहकर भी तन से अलग आत्मभाव में रहता है।
भाव कायोत्सर्ग में तीन बाते आवश्यक है
1. कषाय कायोत्सर्ग 2. संसार कायोत्सर्ग और 3. कर्म कायोत्सर्ग
1. कषाय कायोत्सर्ग में चारों प्रकार के कषायों का निरोध किया जाता है। क्षमा के द्वारा क्रोध को, विनय के द्वारा मान को, सरलता से माया को और संतोष से लोभ को जीता जाता है।
2. संसार कायोत्सर्ग में संसार का परित्याग किया जाता है। संसार चार प्रकार का है - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव
* द्रव्य :- चार गति रुप है।
* क्षेत्र :- ऊर्ध्व, अधो और मध्यलोक रुप है।
* काल :- एक समय से लेकर पुद्गल परावर्तन काल तक है।
* भाव :- इन्द्रियों को विषयासक्ति रुप भाव है।
द्रव्य, क्षेत्र, काल संसार का त्याग नहीं किया जा सकता। केवल भाव संसार का त्याग किया जा सकता है। 3. कर्म कायोत्सर्ग :- अष्ट कर्मों को नष्ट करने के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है।
* कायोत्सर्ग के दोष :- कायोत्सर्ग सम्यग् प्रकार से संपन्न करने के लिए यह आवश्यक है कि कायोत्सर्ग के दोषों से बचा जाए। प्रवचन सारोद्वार में कायोत्सर्ग के 19 दोष बताये हैं। जिसका विवेचन जैन धर्मदर्शन (भाग - 2) सूत्र अर्थ के विभाग में पृष्ट 79 में किया गया है।
* कायोत्सर्ग से लाभ :- कायोत्सर्ग का मुख्य उद्देश्य है आत्मा का सान्निध्य प्राप्त करना और मानसिक संतुलन बनाये रखना। मानसिक संतुलन बनाये रखने से बुद्धि निर्मल होती है और शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है। आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने कायोत्सर्ग के पाँच लाभ बताये हैं।
1. देह जाड्य बुद्धि - श्लेष्म आदि के द्वारा देह में जडता आती है। कायोत्सर्ग में श्लेष्म आदि नष्ट होते हैं। अतः उनसे उत्पन्न होनेवाली जडता भी नष्ट हो जाती है।
2. मति जाड्य बुद्धि:- कायोत्सर्ग में मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है, उससे चित्त एकाग्रह होता है। बौद्धिक जडता समाप्त होकर उसमें तीक्ष्णता आती है।
3. सुख - दुःख तितिक्षा : कायोत्सर्ग से सुख - दुःख को सहन करने की अपूर्व क्षमता प्राप्त होती है। 4. अनुप्रेक्षा :- कायोत्सर्ग में स्थित व्यक्ति अनुप्रेक्षा या भावना का स्थिरता पूर्वक अभ्यास करता है।
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