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1. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ:- मैं अपनी चित्तवृत्तियों को शांत करता हूँ। 2. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ:- मैं समभाव में स्थिर होता हूँ। 3. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ :- मैं माध्यस्थ भावना का सेवन करता हूँ। 4. प्र:- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ:- मैं विश्वदृष्टि जागृत करता हूँ। 5. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ? _उ :- मैं समदृष्टि की वृद्धि करता हूँ। 6. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ:- मैं समता में रहकर समता रस का आस्वादन करता हूँ। 7. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ:- मैं आत्म ज्ञान में प्रवेश कर रहा हूँ। 8. प्र :- मैं सामायिक करता हूँ ? अर्थात् क्या करता हूँ ?
उ:- मैं तृष्णा का त्याग कर रहा हूँ। * सामायिक करने की विधि शुद्ध वस्त्र पहनकर आसन (कटासणा), चरवला और मुहपत्ति लेकर शुद्ध पवित्र स्थान पर चरवले से भूमि
को साफ कर आसन को बिछावें। रागद्वेष रहित शांत स्थिति में 2 घडी (48 मिनट) तक आसन पर रहकर विधिपूर्वक सामायिक व्रत ग्रहण करें। __ सामायिक में आत्म तत्व की विचारणा, अशुभ भावों की शुद्धि, जीवन विकासक धर्मशास्त्रों का अध्ययन एवं चिंतन, आध्यात्मिक स्वाध्याय अथवा परमात्मा की भक्ति भावनाओं का चिंतन, ध्यान,
जाप आदि जो अपने मन को अधिक प्रसन्न चित्त एवं स्थिर करें, वह 2000
करें।
सामायिक में रहा हुआ जीव निंदा - प्रशंसा में समता रखे, मान - अपमान करनेवालों पर भी समभाव रखे।
उपयोग शून्य बनकर एक स्थान पर बैठे रहना ही सामायिक नहीं है। क्रोध, मान, माया, लोभ, द्वेष आदि पर नियंत्रण कर, पापयुक्त क्रियाओं को रोककर, समस्त चराचर जीवों के साथ
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