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बंध तत्व शुभ और अशुभ दो प्रकार का होता हैं। शुभ बंध पुण्य है और अशुभ बंध पाप हैं। जब
तक कर्म उदय में नहीं आते, अर्थात् अपना फल नहीं देते तब तक वे सत्ता में रहते है और जब कर्म फल देने लगते है तब पुण्य पाप कहलाने लगते हैं।
बंध के चार प्रकार:
1- प्रकृति बंध
मेथी
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1. प्रकृति बंध 2. स्थिति बंध 3. अनुभाग बंध और 4. प्रदेश बंध
3- रस (अनुभाग) बंध
:
1. प्रकृति बंध देने के स्वभाव का उत्पन्न होना ।
:
2. स्थिति बंध कर्म की आत्मा के साथ रहने की काल मर्यादा।
कर्म पुद्गलों में अलग-अलग फल
3. अनुभाग बंध :- कर्म दलिको में तीव्र या मंद रस पैदा
होना।
4. प्रदेश बंध :- कर्म के दलिको का
समूह |
इनके संबंध में अधिक विस्तार से कर्म मीमांसा (भाग - 1 ) में विवेचन किया गया है।
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4- प्रदेश बघ
2- Ral an
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