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कायोत्सर्ग
काय क्लेश
अनशन
3. तदुभय (मिश्र) :- जिसमें आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों साथ हो। पहले गुरु के सामने आलोचना करना, बाद में गुरु की आज्ञानुसार प्रतिक्रमण करना। निद्रावस्था में दुःस्वप्नादि के कारण जो दोष लगते हैं उनकी शुद्धि आलोचना एवं प्रतिक्रमण से होती है।
4. विवेक :- साधु के लिए अकल्पनीय सचित या जीवयुक्त आहार, पानी, उपकरण शय्या आदि किसी कारण से आ गए हो तो ऐसे पदार्थों का त्याग करना विवेक प्रायश्चित्त है।
5. व्युत्सर्ग या कायोत्सर्ग :- दोषों की शुद्धि के लिए मन की एकाग्रता पूर्वक शरीर और वचन के व्यापारों का त्याग करना व्युत्सर्ग या कायोत्सर्ग है। (9) विविध तप
6. तप :- दोषों की शुद्धि के लिए अनशन आदि बाह्य तप करना तप
UUUUUUU प्रायश्चित्त है। 7. छेद :- महाव्रत का घात होने पर अमुक प्रमाण में दीक्षा काल को घटाना या कम करना। 8. मूल प्रायश्चित :- साधु द्वारा महा अपराध हो जाने पर मूल से पुनः महाव्रतों को वापिस देना। इस प्रायश्चित में संयम पर्याय का पूरा छेद हो जाता है और दुबारा दीक्षा दी जाती है। 9. अनवस्थाप्य प्रायश्चित :- किये हुए अपराध का प्रायश्चित न करे तब तक पुनः नई दीक्षा न देना अनवस्थाप्य प्रायश्चित है।
10. पारांचिक प्रायश्चित :- महा समर्थ साधु के द्वारा उत्सूत्र प्ररुपणा, साध्वी के शील का भंग करना, संघ में भेद करना आदि गम्भीरतम अपराध करने पर संघ से पृथक करके कठोर तप कराकर छः महीने से लेकर बारह वर्ष पर्यन्त साधु वेश का त्याग करने के पश्चात् शासन की महाप्रभावना करने के बाद जिनको पुनः नई दीक्षा दी जाती है, ऐसा प्रायश्चित पारांचिक प्रायश्चित है।
॥. विनय :- विनय का अर्थ है नम्रता, मृदुता, अहंकार रहितता, आदर भाव। गुणियों और गुणों के प्रति आदर सम्मान विनय तप है। कहा जाता है - "विनीयते अष्टप्रकारं कर्मानेनेति विनयं" जिससे आठ प्रकार के कर्म दूर किये जाते हैं, वह विनय है।
स्वाध्याय
विनय
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