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* निर्जरा तत्व *
नव तत्त्वों में निर्जरा सातवाँ तत्त्व है। संवर के पश्चात् निर्जरा 7.निर्जरा
तत्त्व का स्थान है। संवर नवीन कर्मों के आश्रव को रोकता है तो निर्जरा द्वारा पहले से आत्मा के साथ बंधे हुए कर्मों के कुछ अंश
का क्षय होता है। निर्जरा शब्द का अर्थ है - झडना, कम होना, पानी बिखर जाना या नष्ट हो जाना अर्थात् पूर्वकृत कर्मों का झड जाना। निकालना
जिस प्रकार जहाज में जल के आगमन द्वार को रोक देने पर उस जहाज में रहे हुए जल को बाल्टी आदि से उलीचकर बाहर निकाला जाता है या सूर्य के ताप आदि से धीरे धीरे जल सूख जाता है वैसे ही कर्मों के आश्रव को संवर द्वारा रोक देने पर तप आदि कारणों से आत्मा के साथ पहले से बंधे हए कर्म धीरे धीरे क्षीण होते जाते हैं। कहा जाता है “एक देश कर्म संक्षयलक्षणा
निर्जरा" इस दृष्टि से निर्जरा का अर्थ है कर्म वर्गणा का आंशिक रुप से आत्मा से अलग होना।
बोलचाल की भाषा में यह कह सकते हैं कि मैले कपडे में साबुन लगाते ही मैल साफ नहीं हो जाता। जैसे जैसे साबुन का झाग कपडे के तार - तार में पहुंचता है वैसे वैसे धीरे धीरे मैल दूर होना प्रारंभ हो जाता है। प्रस्तुत बात निर्जरा के लिए भी समझनी चाहिए। साधक ने संवर से नवीन कर्मों को आने से रोक तो दिया किंतु पूर्वबद्ध कर्म मल की मलीनता तप आदि से धीरे धीरे क्षय करता है। अर्थात् जीव का कर्मों से आंशिक रुप से मुक्त होने का प्रयास निर्जरा है और पूर्ण शुद्ध अवस्था प्राप्त हो जाना मोक्ष है।
निर्जरा शुद्धता की प्राप्ति के मार्ग में सीढियों के समान है। सीढियों पर क्रम से कदम रखने पर मंजिल पर पहुंचा जाता है। वैसे ही क्रमशः निर्जरा कर मोक्ष अवस्था प्राप्त की जाती है। * निर्जरा के दो प्रकार है :- 1. अकाम निर्जरा 2. सकाम निर्जरा
1. अकाम निर्जरा :- अनिच्छा से विवशतापूर्वक व्रत - नियम या तप करना अकाम निर्जरा है। आत्म शुद्धि के
असात उद्देश्य से रहित होकर स्वर्गादि की कामना से निदानपूर्वक तप करने से अथवा कर्म फल को आर्त - रौद्र ध्यान से युक्त होकर लाचारी से भोगने पर जो कर्म झडते हैं, उसे अकाम निर्जरा कहते हैं।
एकेन्द्रिय से लेकर तिर्यंच पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य जो असंयत एवं अविरत है उनकी अकाम निर्जरा है क्योंकि वे कष्टों को अनिच्छा से संक्लिष्ट होकर भोगते हैं।
सर्वार्थसिद्धि में कहा है “ कारागृह में रहने पर या रस्सी आदि से बांधे जाने पर जो भूख प्यास सहनी पडती है, ब्रह्मचर्य पालना पडता है, भूमि पर सोना पडता है, तथा विविध प्रकार की पीडाओं को मजबूरी से सहना पडता है, ऐसी स्थिति में जो संताप होता है उसे अकाम कहते हैं तथा अकाम से जो निर्जरा
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